कल्ली पश्चिम का इतिहास महाराजा कल्याण पासी कल्ली पश्चिम का किला
लखनऊ रॉयबरेली मार्ग पर 17 मीटर दुरी पर सड़क के दाहिनी ओर खड़ंजा सम्पर्क मार्ग से 3 किलो मीटर कल्ली पश्चिम गाँव के किनारे कल्ली पश्चिम नामक किला (अक्षांस उत्तर 23-44-47देशांतर पूरब 80-87-4 ) स्थित है यहाँ कुषाण कल से मध्य काल तक के लाल ग्लेज्डवेयर के टुकड़े प्राप्त होते रहे है और इसके अवशेषो में कुषाण काल से गुप्त काल तक की भवन सरचना एवं पुरासम्पदाओ के होने का अनुमान है यह किला महाराजा बिजली पासी के किले के ठीक पूरब की ओर 11 किलो मीटर की दुरी पर स्थित है इसके सरदार का नाम महाराजा कल्याण पासी था इसी के नाम पर गांव का नाम कल्ली खेड़ा पड़ा कहा जाता है की इस किले के सेवको का आपसी विवाद हो गया था तब महाराजा बिजली पासी ने इनका विवाद आकर सुलझाया था इस किले का दो भागों में विभाजन कर दिया ज्ञात्यब्य है कि कल्ली पश्चिम अपने उपरोक्त पूर्ववत स्थान पर ही मौजूद है जबकि दूसरा भाग दाहिनी ओर एक फलाँग के दुरी पर आबाद है कल्ली पश्चिम का किला आज भी टिल्ले के रूप में मौजूद है इस किले पर काफी जंगल है इस किले के चारो और किसानों का कब्जा हो गया है चारो ओर किसान अभी कब्जा करने के फ़िराक मे है इस किले पर एक हनुमान मंदिर भी मौजूद है
कहा जाता हैं कि गांजर की लड़ाई में राजा कल्याण पासी ने गांजर की लड़ाई में लगभग 800 सैनिक लेकर गांजर की लड़ाई में कूद पड़े थे कल्याण पासी को पहुँचा देख बिजली पासी और इनकी सेना में खुसी की लहर दौड़ी कल्याण पासी महाराजा बिजली पासी की सुरक्षा पर उनके चारों ऒर ही मौजूद रहे जबतक कल्याण पासी बिजली पासी के आस पास मौजूद थे तब तक बिजली पासी का कोई बाल बाँका नही कर सका जब राजा कल्याण पासी महाराजा बिजली पासी के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध लड़े थे
गंगा राम विमल अपनी रचना पासी पुराण में जो आल्हा के तौर पर लिखा है
कल्ली पश्चिम की एक कड़ी जोड़ते हुए लिखा है
कल्ली पश्चिम का किला निराला जिसकी एक अलग पहचान
आर के चौधरी अपनी किताब में लिखते है की महाराजा बिजली पासी के साथ साथ राजा कल्याण पासी काम करते थे अर्थात ये दोनों मित्र थे
#महाराजा_कल्याण_पासी
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लखनऊ रॉयबरेली मार्ग पर 17 मीटर दुरी पर सड़क के दाहिनी ओर खड़ंजा सम्पर्क मार्ग से 3 किलो मीटर कल्ली पश्चिम गाँव के किनारे कल्ली पश्चिम नामक किला (अक्षांस उत्तर 23-44-47देशांतर पूरब 80-87-4 ) स्थित है यहाँ कुषाण कल से मध्य काल तक के लाल ग्लेज्डवेयर के टुकड़े प्राप्त होते रहे है और इसके अवशेषो में कुषाण काल से गुप्त काल तक की भवन सरचना एवं पुरासम्पदाओ के होने का अनुमान है यह किला महाराजा बिजली पासी के किले के ठीक पूरब की ओर 11 किलो मीटर की दुरी पर स्थित है इसके सरदार का नाम महाराजा कल्याण पासी था इसी के नाम पर गांव का नाम कल्ली खेड़ा पड़ा कहा जाता है की इस किले के सेवको का आपसी विवाद हो गया था तब महाराजा बिजली पासी ने इनका विवाद आकर सुलझाया था इस किले का दो भागों में विभाजन कर दिया ज्ञात्यब्य है कि कल्ली पश्चिम अपने उपरोक्त पूर्ववत स्थान पर ही मौजूद है जबकि दूसरा भाग दाहिनी ओर एक फलाँग के दुरी पर आबाद है कल्ली पश्चिम का किला आज भी टिल्ले के रूप में मौजूद है इस किले पर काफी जंगल है इस किले के चारो और किसानों का कब्जा हो गया है चारो ओर किसान अभी कब्जा करने के फ़िराक मे है इस किले पर एक हनुमान मंदिर भी मौजूद है
कहा जाता हैं कि गांजर की लड़ाई में राजा कल्याण पासी ने गांजर की लड़ाई में लगभग 800 सैनिक लेकर गांजर की लड़ाई में कूद पड़े थे कल्याण पासी को पहुँचा देख बिजली पासी और इनकी सेना में खुसी की लहर दौड़ी कल्याण पासी महाराजा बिजली पासी की सुरक्षा पर उनके चारों ऒर ही मौजूद रहे जबतक कल्याण पासी बिजली पासी के आस पास मौजूद थे तब तक बिजली पासी का कोई बाल बाँका नही कर सका जब राजा कल्याण पासी महाराजा बिजली पासी के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध लड़े थे
गंगा राम विमल अपनी रचना पासी पुराण में जो आल्हा के तौर पर लिखा है
कल्ली पश्चिम की एक कड़ी जोड़ते हुए लिखा है
कल्ली पश्चिम का किला निराला जिसकी एक अलग पहचान
आर के चौधरी अपनी किताब में लिखते है की महाराजा बिजली पासी के साथ साथ राजा कल्याण पासी काम करते थे अर्थात ये दोनों मित्र थे
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