शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

राजा राम पाल पासी का इतिहास अवध के पासियो का इतिहास


 साथियों चक्रवाती सम्राट महाराजा सातन पासी को तो आप जानते होंगे  क्या आप जानते हो उनका नन्हिहाल कहां का था तो जानते है उनके नन्हिहल के बारे में


*हसनगंज* से उत्तर लगभग 20 किलो मीटर पर एक मध्यकालीन टीला मौजूद है इस टिल्ले के पूरब *करौंदी* पश्चिम में *कैथन* खेड़ा दक्षिण में *रामपुर* और *जवन* है  

इस टिले के चारो तरफ झील बनी हुई थी वर्तमान में झील समाप्त हो गई है

महाराजा सातन पासी की माता जी का मायका इसी क्षेत्र का बताया जाता है ऐसा प्रतीत होता है की यह किला  महाराजा सातन पासी के नाना के द्वारा निर्मित किया गया था आज भी यह किला टीले के रूप में रामपुर में मौजूद है।


इस टिले पर वर्तमान में एक गौशाला निर्मित है 

इस क्षेत्र में *महाराजा सातन पासी* के

सहयोगी राजा और जयचंद के गंजार युद्ध अभियान में आल्हा ऊदल से भयंकर युद्ध हुआ था 

भीषण रक्त पात के बावजूद इस क्षेत्र को पासियो से जीत नही पाए आज भी इस क्षेत्र में खुदाई के वक्त बड़ी मात्रा में पुरानी हड्डियां निकलती है। 

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साथियों गांजर युद्ध के समाप्त होने के  लगभग 27 साल बाद तकरीबन सन (1223) ई० के आसपास महाराजा सातन पासी के ननिहाल के वंश में से ही एक युवा पासी रामपाल इस क्षेत्र का राजा बना उसी के नाम से इस गांव का नाम रामपुर पड़ा रामपुर उन्नाव जिले के औरास ब्लाक का एक छोटा सा गांव है 

गांजर युद्ध में इस क्षेत्र पर पश्चिम और दक्षिण की ओर से आल्हा ऊदल के नेतृत्व में कन्नौज के राजपूत राजा जयचंद की सेनाओं के हमले हुए थे

उसी बात को ध्यान में रखते हुए राजा रामपाल पासी ने पश्चिम और दक्षिण में दो किले बनावा दिया इन किलो में सैनिकों की नियुक्ति होती थी

और यहीं से इस क्षेत्र पर निगरानी रखी जाति थी

यह किला रामपुर से तकरीबन 3 किलोमीटर की दूरी पर बसंता खेड़ा में टिल्ले के रूप में आज भी मौजूद है

दूसरा किला नंदौली में बनवाया था


रामपुर बछौली और नांदौली में आज भी पासियो की सर्वाधिक आबादी निवास करती है 

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रामपुर : के टिले पर लखौडी इंटो की दिवारे आज भी देखी जा सकती है और इस टिले पर एक कुआं बना हुआ था यहां मध्यकालीन मिट्टी के बर्तन अभी भी मिलते है 

यहां कई प्रकार की मूर्तियां भी मिलती है टिल्ले पर कुटिया माता का जबूतरा बना है और आसपास के पासियो द्वारा कुटिया माता की पूजा की जाति है

उस टिले को आज ग्रामीणों द्वारा कोट कहा जाता है 

इस टिले की खुदाई के वक्त पुरानी जंग लगी तलवारे भी पाई गई


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रामपुर के क्षेत्र  से

मैनपुरी के बैंस राजपूत दूदू राय अपने सैनिक टुकड़ी के साथ डोली में बैठ कर जा रहे थे 


पासियो को यह प्रतीत हुआ की कहीं  सैनिकों के साथ राजपूत किले पर हमला न कर दे इसी कारण नंदौली में नियुक्त सेना पति नंदलाल पासी ने मैनपुरिया राजपूतों को सेना लेकर जाने से रोक दिया 


जिस कारण पासियों में और  मैनपुरिया राजपूतों में युद्ध छिड़ गया

यह सूचना रामपुर के पासी राजा रामपाल को ज्ञात हुई तो राजा ने बछौली के किले में नियुक्त सैनिको को युद्ध के लिए आदेश दिया राजा का आदेश पाकर सेना पति बसंत पासी सेना लेकर युद्ध में जा डटे


राजपूतों को पासियो ने हरा दिया उनके घोड़े हथियार और डोली छीन ली 

राजपूत मैनपुरी की तरफ भाग खड़े हुए

लेकिन मैनपुरिया राजपूत इस अपमान जनक हार से शांत नही बैठे वह कुछ साल बाद तकरीबन 1249 ई० में सशस्त्र बल के साथ विशाल सेना लेकर दुबारा लौटा और किले पर हमला कर दिया अचानक हमला देख पासियो और राजपूतों में भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन पासी युद्ध हार गए

इस क्षेत्र से पासियो को सत्ता से बेदखल कर दिया। और राजपूतों ने

अपना अधिकार कर लिया   इस क्षेत्र पर अधिकार करने के 4 साल बाद ही राजपूतों का राज्य को लेकर आपस में विवाद हो गया सन 1253 ईo में दूदू राय के वंशजों द्वारा ही दुद्दू राय को बंधक बना लिया गया परिणामस्वरूप तालुका राजा सोभा सिंह के हाथों में चला गया उसके बाद उनके भतीजे मकरिंद सिंह उनके उत्तराधिकारी बने थे उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह क्षेत्र राजपूतों के अधिकार में रहा

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गजेटियर में जिस भरपासी जाति के बारे में मैनपुरिया राजपूतों की डोली लूटने का उल्लेख किया गया है वह इन्ही पासी राजा रामपाल वा उनके सैनिकों के बारे में किया गया 


पासी समाज के इतिहास को निरंतर  सरकार वा इतिहासकारो द्वारा छुपाया गया

पासियो का इतिहास अगर कहीं लिखा हुआ है तो वह सिर्फ राजपूतों के इतिहास को उजागर करने के उद्देश्य से लिखा गया जो हमलावर राजपूत थे उन्हे नायक के रूप में दर्शाया गया है


यह निश्चित ही अगड़ी जातियों का षड्यंत रहा है जब राजपूत इन्हे हरा ना सके तो यंहा की स्थानीय निवासी शासक जाति पासी को लुटेरा की संज्ञा  दी ताकि प्रजा पासी राजाओं से बगावत कर दे


(Distic gazetteer ) के अनुसार


*रामपुर-बछौली और नंदौली* का राजपूतों का परिवार बैस कबीले से संबंधित है और कहा जाता है कि इस क्षेत्र में बैंस राजपूतों की स्थापना मैनपुरी के दूदू राय ने की थी,जो एक दुल्हन की डोली लेकर अपने सैनिकों के साथ मुखिया के रूप में परगना से गुजरते समय इटौंजा जा रहे थे, लगभग सात सौ साल पहले, रामपुर, बछौली और नंदौली  

में भरपासियो ने हमला किया और उन्हें लूट लिया


रामपुर के पासी राजा रामपाल ने तकरीब 26 साल इस क्षेत्र पर शासन किया उनका समय काल कुछ इस तरह रहा था

(1223 से 1249) ई तक रहा


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