बुधवार, 20 जनवरी 2021

#भारशिव वंश #पासी_जाति

 भारशिव वंश ( पासी जाति ) का संक्षिप्त इतिहास

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#भारशिव_वंश_पासी_जाति 

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   "पासी जाति अवध कि शासक जाति रही है " पासी जाति  ( Ruler of Oudh ) के नाम से इतिहास के पन्नों में संकलित है जिनके बारे में कहा जाता है कि वे  11 वीं एवं 12 वी सदी में अवध में बड़े ही शक्तिशाली थे जिनका जीवन संघर्षों में बीता । जिनके किले कस्बे आज भी खंडहरों के रुप देखे जा सकते है एवं  पासी आबादी बाहुल्य क्षेत्र है  जो उनके अतीत के गौरव को दर्शाते है ,जिनके साक्ष्य हमे मुस्लिम एवं ब्रिटिश अभिलेखों में मिल जाते है  भारत देश में  सम्राट हर्षवर्धन 6 ईसवी के बाद  देश कई  छोटे छोटे राज्यों में बट गया कई सारे नए  प्रांतीय राजवंशों का उदय हुआ जिनमे पश्चिम में राजपूत , गुर्जर , सोलंकी, चालुक्य  आदि , उसी तरह  से उत्तर भारत के अवध प्रांत में राजपासी का उदभव हुआ , ये सभी वंश किसी ना किसी प्राचीन भारत के शक्तिशाली वंशो निकले थे , जिनके पराभव के बाद भी उनकी औलादों ने  सही समय आने पर अपनी-अपनी शक्तियों को पुनर्जीवित कर  राजसत्ता हासिल की ,जिसके लिए ओ जाने जाते थे । 

            हम उसी वंश का पता लगाने कि कोशिश करते है और  इतिहास के पन्ने पलटकर बड़ी गूढ़ता से अध्ययन करते है  तो हम पाते है पासी भारत की नागवंश जाति है जिन्होंने उत्तर भारत के अवध में शासन किया  । और हम आज पासी जाति के वंश, नाग- भारशिव वंश के बारे मे विस्तृत चर्चा करेंगें  ।


               [[ ब्रिटिश विद्वान रसेल -1916 ]]    - पासी जाति को द्रविड़ियन जाति  और भारत का मूलनिवासी  aboriginal, inhabitants  माना है  और विद्वानों ने द्रविड़ को नाग जाति माना है  ।   


पासी जाति अवध में केंद्रित रही  है और इसी संबन्ध मे ब्रिटिश विद्वान - [[ Robert vane russell ]]  the tribes and caste of the Central provinces of India V -4 

       

                                    में --( page no 381-385)


[[ Mr. Crook's article on Pasi , And include questions from sitapur ]] ----- पासियों के बारे मे कथन है ---

         " Pasi In the past they were lords of the country ,and that their King regined in the district of Kheri , hardoi ,and unnao . Ramkot , where the Town of bangarmau in Unnao now stands  ,is said to have been on of the their chief strongholds  . The the Last of pasi lords of ramkot ,raja satan ,threw off allegiance to kannauj and refused to pay tribute ."  

         प्राचीन समय में पासी इस देश के राजा कहलाते थे उनके राजा खीरी हरदोई उन्नाव और रामकोट जो बांगरमऊ में आता है कहा जाता है - कि इनके राजा उस समय बड़े ही शक्तिशाली थे ( यानी 12 वीं सदी ) जिन्होंने कन्नौज के प्रति अपनी निष्ठा खत्म करके उनको कर देने से साफ साफ मना कर दिया था । 

         ब्रिटिश  विद्वान  [[ Mr.Elliott ]] कथन है कि उन्नाव जिले में पड़ने  वाला " ramkot was the neighborhood was bangarmau,was the old capital of Pasis " रामकोट पासियों की पुरानी  राजधानी  रहीं है 


    ( यही युद्ध का कारण बना गांजर युद्ध हुआ  1184 AD.)


    उपरोक्त कथन के अनुसार  पता चलता है राजा सातन पासी  12 वीं सदी में बड़े शक्तिशाली बन गए थे और उन्होंने कन्नौज के राजा जयचंद से अपनी निष्ठा खत्म कर दी थी और वही युद्ध का कारण बना । और आपको याद दिला दूं बांगरमऊ प्राचीन समय में नाग जाति का शासन यहां रहा है और यह क्षेत्र आज भी पासी बाहुल्य है -   1852 मैं लंदन में छपे  एक आर्टिकल में  इस बात का जिक्र होता है इस क्षेत्र के पासी बड़े  विद्रोही है है जो अंग्रेजों को लगातार परेशान करते आ रहे थे ।


यह बात उनके आदतों को बयान करता है कि  पासी कभी भी अत्तः नहीं सहन करते  थे वह  स्वतंत्र रहना चाहते थे  यह उनके परपंरा वादी चली आ रहीं  प्रवृति के चलते था  । जिसका बीज सदियों पहले  नाग भारशिवो  ने बोए थे ,  और भारतीय पुरातत्व विभाग  द्वारा  राजा सातन पासी के किले में हुई थी जहां पर एक मोहर प्राप्त हुईं जिसमे ब्राह्मी लिपि में ' 'सिद्धेश्वर' लिखा था और  अनेकों अनेक शिवलिंग कि मूर्तियों की प्राप्त हुई थी । और भारत में शिव मत की शुरुआत मजबूती से 2-3 ईस्वी में  नाग भारशिवो द्वारा कि गई । और विद्वानों ने पासी जाति को बौद्ध और शैव मत दोनो कहा है 


[[ अवध गजेटियर में साफ साफ कहा है  "  प्राचीन समय में पासियों के पुरखे बौद्ध मत के थे लेकिन जल्दी ही उन्होने बौद्ध   मत का परित्याग कर ब्राह्मण धर्म की ओर आकर्षित हुए " ]] 


    Note ✓  " This is most important thing "  


यह घटना सीधे तौर पर उसी समय काल को संकेत करते हुए दिखाई देती है जब कुषणो के आतंक से परेशान होकर नाग जाति के लोगों ने शिव का भार अपने  कंधे पर उठाकर कुषणों को देश के बाहर खदेड़ने की  प्रतिज्ञा कि थीं यानी  उस समय एक नए दर्शन ( philosophy ) का सृजन हुआ । और हो ना हो उसी समय नाग जाति के लोग ब्राह्मण धर्म के तरफ़ थोड़ा झुकाव हुआ हो , तभी भारशिव ( नाग वंश ) लोगो का वर्णन वाकटक के शिलालेख और ताम्रलेख में मिलता है  और वकाटक वंश को विद्वान ( ब्राह्मण वंश ) मानते है , लेकीन जबतक भारशिव शक्तिशाली रहें तब तक ब्राह्मण धर्म हावी ना हो सका । और तो और  भारशिव के तुरन्त बाद वकाटक वंश का शक्तिशाली बनना हमे यही सोचने पर मजबूर करता है  वकाटकों ने  सत्ता भारशिव से ही ली थी इसमें दो राय नहीं है , भारशिव नाग पर प्रकाश डालने वाले प्रख्यात विद्वान के.पी जयसवाल जी का भी यही कथन है  उसके बाद नाग भारशिव वंश का पतन होना शुरु हुआ ।   

           

पासियों का बौद्ध धर्म का परित्याग कर ब्राह्मण धर्म की ओर जाना जिसे ब्रिटिशो ने ब्राह्मण धर्म बताया है दरसअल वह शैवमत था  , क्योंकि ब्रिटिश विद्वानों ने पासी जाति की पूजा पद्धति ब्राह्मण से नहीं मिलती है इसका भी उल्लेख किया है जो वास्तव में सच है  एवं  पासी जाति  शिव को मानने वाला बताया  है और वास्तव में आज भी पासी जाति भगवान शिव में आस्था रखती आयी । इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है उनमें प्राचीन परंपरा आज भी जिंदा है 


और अवध गजेटियर में  जिक्र वह वाक्य उसी घटना के समय काल का बोध कराती नजर आती है  

                मै  इस बात को बड़ी मजबूती से कहता हूं  पासी प्राचीन समय के नाग भारशिव  है पासी आधुनिक नाम है इसका समर्थन एक तो उनका उसी जगह पर होना, उनका शासन , उनकी नाग जाति के लिए बताई गई आदतें  एवं  अवध गजेटियर में बताया गया उनके बौद्ध धर्म का परित्याग जैसा ऊपर बता चुका हूं

  

          मैं इस बात की टिप्पणी लोगो को किसी भी धर्म या संप्रदाय के तरफ मोड़ने के लिए नही अपितु इसलिए कर रहा हूं  कि उपलब्ध साक्ष्यों में इस बात का जिक्र है  पासी जाति के अवध  में जितने  भी किले हैं वहां पर शिव से संबंधित मूर्तियां एवं आकृतियां जरुर मिलती है ।  


( महाराजा सातन पासी का किला जहां है प्राचीन समय में इस क्षेत्र को बांगरमऊ कहा जाता था )


                     जिसका सबसे बड़ा उदाहरण राजा सातन पासी ( सातन कोट )  की खुदाई में मिले मोहर पर अंकित  'सिद्धेश्वर ' जो शिव को समर्पित है शिव को ही सिद्धेश्वर कहते है  और ऐसा नहीं है कि सिर्फ शिव की मूर्तियां मिलती हैं और यहीं नहीं  यहां पर बौद्ध कालीन  प्रमाण मिलते हैं जबकि बौद्ध धर्म भारशिव से पहले यहां पर थीं तो बुद्ध की आकृतियां ज्यादा मिलनी चाहिए थी ? लेकीन  बुद्ध की अपेक्षा  शिवलिंग / मूर्तियां  आदि के  प्रचुर मात्रा में मिलते है  इसका मतलब यह है कि पासी जाति के पुरखो  ने बौद्ध धर्म का परित्याग करके शिव  में अपनी आस्था  जगाई थी  और यह आस्था  कुषाणो के बौद्ध धर्म के दो टुकड़े करने के बाद ही जागा, जब महायानी बौद्धों ने भारतीयों पर अत्याचार करना शुरु किया तब हमारा बौद्ध धर्म भी विघटित हुआ , यहीं कारण है उस समय भारतीय जनता इतनी व्याकुल हो गई थी कि उन भारतीयों को उन दुष्टों से मुक्ति दिलाने के लिऐ नाग जाति के लोगो अदम्य साहस का परिचय दिया  ।  शिवलिंग का भार अपने कन्धे पर उठाया और प्रतिज्ञा की और कुषाण लोगो को काबुल तक खदेड़ कर कूषणो के आतंक से भारतीय जनता को मुक्ति दिलाई , फिर 10 अश्वमेध यज्ञ किए  भारशिव कहलाए और भारशिव वंश कि स्थापना की ।  भारशिव दरसअल नागो के लिए एक  उपाधि थी , लंबे समयांतराल बाद भी उत्तर भारत मे वह भारशिव  शब्द विकृत रुप से  भर  रूप में तब्दील हुईं और अवध मे कई कोने भर नाम से प्राचीन जगहों का नाम आज भी है  जैसे  जैसे भरावन , भरखनी,, छोटा भरवारा, बड़ा भरवारा  ,भरवारी, भरहे मऊ आदि इन सभी जगह पर 90% पासी जाति की आबादी है जो उनके अतीत के गौरव को दर्शाती है ।  


और अवध में भर शब्द पासी जाति के लिए जोड़ा जाता है 

 

( जिसकी फोटो मै पोस्ट कर रहा हूं बाकायदा उस ताम्रलेख के साथ हिंदी अनुवाद और ब्रिटिश दस्तावेजों से निकाल कर )


नोट✓= नीचे अपलोडेड फोटो सिर्फ़ भारशिव से संबंधित  है


भारत देश में भार-शिव का उद्भव मध्य भारत और उत्तर भारत में हुआ है  और उत्तर भारत के अवध क्षेत्र में जहां नागों की राजधानी रही है जिसमें से बांगरमऊ प्रसिद्ध है एवं भारशिव के जगहों पर पासी जाति बाहुल्य आज भी है जो उनके प्राचीनतम निवास एवं उनके गौरवमई अतीत को दर्शाती है । और बंगार मऊ के बारे मे ऊपर चर्चा कर चुका हूं  

#भारशिव_वंश_पासी_जाति 


अब तक आपने यह जान लिया होगा कि की नाग जाति की उपाधि भारशिव है यानि नागो के लिए भारशिव नया नाम था   आपके मन मे यह सवाल उठता होगा क्या किसी विद्वान् ने पासी  जाति को नाग कहा है 

              तो उसका उत्तर है हां ?


[[अमृतलाल नागर ]] - 

                          जी ने पासी जाति को असुर/ नाग एकदा नैमिषारण्य में  कहा है उसका मुख्य कारण था , इतिहास में मिले साक्ष्यों के आधार पर जैसे  नाग जाति ज़मीनो के निचे आवास बनाने में परांगत और नाग जाति धनुष तीर चलाने में निपुण थे और दारू का सेवन करती थे वहीं लक्षण  पासी जाति  में दिखाई देती है पासी धनुष तीर चलाने में और सुरंग खोदने में निपुण रहें यह सारे लक्षण  पासी जाति के लोगो में 1857 में देखे गए उनके यह दुर्गुण युद्ध के समय सगुण बन जाते थे और 1857 में पासी जाति के लोगो ने रेजीडेंसी और बेलीगरद में सुरंगे बिछा कर अंग्रेज़ो के दांत खट्टे कर दिए थे , क्योंकि अवध में सुरंग खोदने की कला पासियों को भलीभांति आती थी और दूसरी जाति यो  का नाम सुरंग खोदने में  बड़ी मुश्किल से ही कहीं दिखाई देता है यह सारी आदतें पासी जाति के लोग परम्परा गत तौर पर बखूबी से जानते है थे यहीं कारण था और लोगो में यह तकनीक नहीं दिखाई देती थीं  और anthropology के हिसाब से भी पासी जाति के लिए यह लक्षण  बिलकुल वैसे हि नज़र आते थे जैसे नाग जातियों के बारे मे वर्णन मिलता है यही कारण रहा होगा कि अमृतलाल नागर जी पासी जाति को नाग /असुर के समकक्ष माना है


[[ ऊपर आप सभी नाग/भारशिव /पासी का एक क्रम आप समझ गए होंगे  ]]  


अब हम समझने की कोशिश करेगे #भारशिव कौन थे और #भारशिव_राजवंश क्या था  ।


Introduction bhar-shivas: 


[[ भारशिव कौन थे  ]] 

                               भारशिव लोग प्राचीन नाग थे जिनके लिए भारशिव एक उपाधि थी  भारशिव के बारे मे विस्तृत जानकारी पहली बार हमे  

          वकाटक वंश के राजाओं द्वारा लिखित अभिलेखों और ताम्रलेखो में मिलती है , उन अभिलेखों की खोज 1840-1870 के सशक्त में ब्रिटिशों द्वारा की गई।  जिसका वर्णन  [[ inscription of the early Gupta's and the successor ]]   by john faithfull fleet  द्वारा 1880 में किया गया है 

              इसके बाद भारशिवो ऊपर विस्तृत वर्णन  श्री के. पी. जयसवाल जी ने 1936 में [[ history of India 150.AD-350.AD ]] जिसका हिंदी संस्करण [[ भारत वर्ष का अंधकार युगीन इतिहास  ]]  में  बाकायदा किया है  ।


         [[ Gupta inscription page no ,236-241 ]] जिसकी फोटो अपलोड की है कृपया उसे देखे ।


Introduction bharshiva : भारशिव कौन ? 

              [[ ताम्रलेख में श्लोक वर्णन ]]

 chhamak प्लेट जो वकाटक राजा प्रवर्सेन द्वितीय के लिए जाना गया है उसमे भारशिव का संक्षिप्त इतिहास 


भारशिव :  श्लोक =  अंशभार सन्निवेशित शिवलिंगोदवहन , शिव सुपरितुष्टानाम समुत्पादित राजवंशनाम् पराक्रम अधिगत : भागीरथी : अमल जल मुरघाभिष्कतानाम् दशाश्वमेघ अवमृथ स्नानानाम् भारशिवानाम्


   अर्थात :  अपने कंधों पर शिवलिंग का भार वाहन करके शिव को सुपरितुष्ट करके जो राजवंश पैदा हुआ उस भारशिव वंश ने पराक्रम से विजय प्राप्त कर , गंगा जल से अवभृत से स्नान कर गंगाजल से ही अपना राज्यअभिषेक करवाकर दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। By के. पी जयसवाल [[ भारत वर्ष का अंधकार युगीन इतिहास पृ . 10 ]]  


    इस कीमती ताम्रलेख से भारशिव के उस राजवंश का पता चलता है जिसने  अपने बाहुबल से 10 अश्वमेध यज्ञ किए  अर्थात नाग वंश के उन लोगों ने, जिन्होनेअपने पराक्रम से ऐसे विजय हासिल की  और एक ऐसे राजवंश की स्थापना की जिसका अर्थ ही त्याग और बलिदान था जो इस देश धर्म की रक्षा कर सकें ।   


     उस राजवंश से पासी जाति का क्या  संबन्ध है ? 


 सबसे पहले हम समझेंगे कि राज = वंश  क्या जिक्र है 


अब इस श्लोक कों देखे तो उसमे [[ राजवंशनाम‌् ]] आया है फिर [[ भारशिवनाम‌् ]]  यानी  भारशिवो का राजवंश ।


इसी के परिपेक्ष्य में इतिहास दो शब्द बड़े महत्वपूर्ण है जैसे 


  राज +पुत्र = राजा का पुत्र अर्थात राजपूत 

  राज+ वंश  = राजा का वंश अर्थात राजवंशी


जिसमे राजपूत वर्तमान में ( स्वर्ण क्षत्रिय )  के लिए होता है 

और राजवंशी अवध में ( राजपासी ) के लिए यानी पासी का राजवंश । अंग्रेजो के समय हुऐ फिल्ड सर्वे में हरदोई और सीतापुर के पासी जाति के लोग  राजवंशी और राजपासी दोनो कहते मिले थे ,  रजपासी/राजवंशी  दोनों एक समान है  

  

अवध गजेटियर में इस बात कि पुष्टि होती है की पासी जाति के आगे राज लगा है जिसका सीधा सा अर्थ अतीत में इनकी  राज सत्ता रहीं होगी , ब्रिटिश विद्वान् p.carnegy 1860 के दशक में हरदोई सीतापुर  राजपासियो को बड़े करीब से अध्ययन करते है और Mr. Crook : 

                          भी यही बात कहते है [[  राजपूतों और मुसलमानों के आक्रमण से पहले उत्तर भारत में पूर्व में चेर मध्य मे भर और पश्चिम में राजपासियो का शासन रहा है ]] 

                                      और अवध में राजपासी और भर एक ही लोगो के दो दो नामावलियां है ।   


Lucknow settelment report में  सीतापुर में 'पासी राज' होने की पुष्टि होती है जो अकबर के समय तक बरकरार रहा और [[ पासी राज ]] सीतापुर , हरदोई के पश्चिम जिलों में यहां तक की फरुखाबाद तक फैला था इसका सुंदर उदाहरण अवध गजेटियर में  देखने को मिल जाता है ।   


                [[ भारशिव राजवंश या राजपासी ]]


उपरोक्त दी गई जानकारियों को आप सभी ध्यान में रखते हुए साक्ष्यों के तालाश में होंगे इसलिए मै आप सभी को साक्ष्यों के आधार पर हि जानकारी दे रहा हूं 

 

भारशिव शासन 150-350 ई. तक माना गया है भारशिव के बाद वकाटको ने , उसके बाद गुप्तो ने  इस देश का शासन संभाला  {{ नाग-भारशिव = वकाटक = गुप्त }}     


फिर जब इनका पराभव हुआ तो यह मौके के सही तलाश में रहने लगे  । सम्राट  हर्ष वर्धन के बाद  अवध में यह अपनी शक्ति को पुन: संगठित करने में लगे ऐसा अनुमान लगाया जाता है ।  और जब जानकारी होती है तब 918 ई में राजा त्रिलोक चंद पासी ने सम्राज्य कि पुन:  नीव रखी  । 


[[ भारशिव इतिहास ]] :  तीसरी सदी . में नाग वंश के वह लोग जिन्होंने शिव का भार अपने कंधों पर वाहन करके शिव को सुपरितुष्ट करके एक नए राजवंश की नीव डाली थी वहीं वंश भारशिव वंश कहलाया । भारशिव वंश भारत देश में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में फैला भारशिवो ने जिस वंश को खड़ा किया , आगे चलकर वही ( राजवंश ) अवध में ( राजपासी ) के नाम से जग विख्यात हुए जिन्होंने 10 - 12 वी सदी तक अवध में शासन किया ।


  [[ प्रसिद्ध इतिहासकार डॉनवल वियोगी कहते हैं ]]  : -कि भारशिव लोग विंध्य क्षेत्रों में भर और अवध में पासी जाति के नाम से जाने गए । और अवध में भर , पासी जाति की 14 उप जातियों में एक है । 

 

जिस प्रकार से नागो ने अपने पराक्रम से एक राजवंश की स्थापना कर भारशिव नाम दिया  , भारशिव  नागो के लिए एक उपाधि थी जो बाद में  इसी नाम जानें गए 


             तो इसकी जानकारी हमें कहा मिलती है कि राजवंशी या राजपासी  का एक ही समन्वय है ?


               ==  तो  उत्तर है  हां मिलती है =


   [[ Rajvanshi /Rajpasi  ]] इसके बारे अपने विचार सबसे पहले  1873 में Mr. H .H butts साहब ने व्यक्त किया है [[ Report of the land revenue setteltment 

Of the lucknow district .1873,p. xxiv ]]  


[[ A bhars daynasty ]]  [[ Pasi Kingdom ]] 


Note ✓  जिस समय यह बुक  1873 में शोध के बाद लिखी जा रही थी उस समय भारशिवो का संक्षिप्त इतिहास बहुत कम पता था ना के बराबर ,1888 में gupta inscription में भारशिव के बारे मे विस्तृत जिक्र किया गया था , उससे पहले लिखे गए bhars शब्द सीधे भारशिवो के लिए जोड़ा जाना चाहिए  ना कि तथाकथित जाति जो पूर्वी उत्तप्रदेश में इस नाम से मिलते जुलते जान पड़ते है यहीं बात के. पी. जयसवाल ने भी कहा है  ।  यह एक सुधार नव इतिहासकारों को करना चाहिए तभी उसकी गूढता में छिपे रहस्य को जान पाएंगे ।  


[[ A Bhars Dynasty 918 ]]


This chief fixed upon Baraich as his seat of empire, and lead a powerful army against Rájah Bikrampál of Delhi, whom he defeated, and dispossessed of his kingdom. 


" राजा त्रिलोक चंद ने 918 में  साम्राज्य की पुन स्थापना की , इस प्रमुख ने  बहराइच को अपनी राजधानी बनाया और शक्तिशाली सेना एकत्रित की और दिल्ली के शासक विक्रमपाल हराया और उसे  उसके राज्य तक खदेड़ दिया" ।


Tilok Chand is said to have been a worshipper of the sun. Near Baraich is a temple in his honour called Báláark,-Ark is the Sanscrit for sun-and he wished in imitation of the Súrajbans to give a new and better name to his tribe. He accordingly called them the Arkbans, and to his own immediate family he gave the title of Ark-ráj- bansí.  


अर्थात :  तिलोकचंद के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह सूर्य देवता के पुजारी थे। बहराइच में उनके सम्मान में बना बलार्क  नाम का सूर्य मंदिर है आर्क का  संस्कृत नाम सूर्य से है। 

 उन्होंने सूरजबंसियो की तरह अपनी जाति को  एक नया और बेहतर नाम देने की इच्छा जताई । और इसी के अनुसार उन्होंने अपने जाति के लोगों को अर्क बंशी नाम दिया तथा अपने परिवार के लोगों को  अर्क-राजबंशी का उपनाम दिया । 


Later on when they lost all power they became known as the Arakhs and Ráj-bansís, which latter word in the usual process of decay of language, and the loss of its earlier meaning, became changed to Rajpasia. Aut ex re nomen, aut ex rocabula fabula. Native tales mostly depend upon the name, and his ingenuity seems here to surpass itself, bans has become pásí,–not possible by any etymological law of change-and he has lost sight of his Bhar dynasty in order to invent an origin for the word Rajpasía.  


बाद में शक्ति विहीन हो  जाने के पश्चात  आर्क-राजवंशी  2 शब्दों में विभक्त  हो जाने पर अर्क और राजबंशी दो अलग-अलग  नाम से जाने जाने लगे ।  जिसमें से राज बंशी समय के अनुसार भाषा में परिवर्तन के कारण राजपसिया में परिवर्तित हो गया।  बंश बदलकर पासी हो गया ऐसा किसी भी व्याकरण शब्द व्युत्पत्ति के अनुसार असंभव है।  लोगों ने राजपासी शब्द के उत्पत्ति की खोज करने के चक्कर में भर नामक साम्राज्य  उनकी दृष्टि से ओझल हो गया। 


  ( अर्थात रजपासी के प्रचलन में भर शब्द कम या विलुप्त हो गया यानी एक समय तक एक शब्द का बने रहना उसके बाद उसकी जगह दुसरा शब्द प्रचलन में आ जाना  ) 


निष्कर्ष :  उपयुक्त पैराग्राफ के अध्ययन से यह बात समझ आती है  राजा त्रिलोक चंद ने नाम के आगे एक नया उपनाम / उपाधि जुड़ चुका था  वह है राजपासी दूसरी चीज यह थीं कि राजा त्रिलोक चंद पासी  उसी भारशिव राजवंश के थे जो अपने समय से  600 साल पीछे यानी दूसरी से तीसरी सदी में शक्तिशाली थे , राजा त्रिलोकचन्द पासी ने अपने वंश  के लोगो कि विखंडित शक्तियों  को मजबूत कर एक बार पुन : राजवंश खड़ा किया , पूरे अवध , दिल्ली , पहाड़ी क्षेत्रों  को जीत कर बहराइच  को अपनी  राजधानी स्थापित किया  , राजा त्रिलोक चंद पासी बहराइच से  राज करता था ।

यानी राजा त्रिलोक चंद पासी 918 ई में ही  अपने जाति या वंश का नाम बदलकर नया नाम रखने की इच्छा जताई जिसके फलस्वरूप राजबंसी/रजपासी नाम प्रचलित हुआ और इसलिए हरदोई,सीतापुर, खीरी , बहराइच की जो बेल्ट है यहां पासी आज भी खुद को राजपासी और राजवंशी ही कहलाना पसन्द करते है ऊपर से हरदोई के फील्ड सर्वे मे पासीयो ने ख़ुद राजा त्रिलोक चंद का वंशज कहा था 150 साल पहले अगर पासी यह कह रहे थे तो इसमें दो राय नहीं है राजा त्रिलोकचंद पासी थे और वह भारशिव थे  यह भिन्न भिन्न नामावलियां है एक ही जाति के लिए और 

    भारशिव/ राजपासी  

अवध में पासी ही भारशिव वंश है क्योंकि इनमें ही सारी शब्दावलिया समाहित है ।


यह सिलसिला बिलकुल  उसी तरह से था जैसे  नागो ने भारशिव राजवंश की स्थापना की उसी क्रम में इससे हमे यह पता चलता है  कि 918 ई राजा त्रिलोक चंद अपने परिवार और वंश के लिए एक नया नाम राजपासी  रख लिया , बाकी जाति के लोग अपने पुराने नाम भारशिव जों अपभ्रंश होकर भर नाम से बने रहे है  और यह सभी पासी जाति के अंतर्गत है    अवध में जहां जहां भर नाम से किले खंडहर है जो भारशिवो से संदर्भित रहा है  वहां आज भी पासी जाति बाहुल्य है     #भारशिव_वंश_पासी_जाति_इतिहास 

 

#Short_History_Pasi_caste :  तीसरी सदी . में नाग वंश के वह लोग जिन्होंने शिव का भार अपने कंधों पर वाहन करके शिव को सुपरितुष्ट करके एक नए राजवंश की नीव डाली थी वहीं वंश भारशिव वंश कहलाया । भारशिव वंश भारत देश में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में फैला भारशिवो ने जिस वंश को खड़ा किया , आगे चलकर वही ( राजवंश ) अवध में ( राजपासी ) के नाम से जग विख्यात हुए जिन्होंने 10 - 12 वी सदी तक अवध में शासन किया । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉनवल वियोगी कहते हैं : -कि भारशिव लोग विंध्य क्षेत्रों में भर और अवध में पासी जाति के नाम से जाने गए । और अवध में भर , पासी जाति की 14 उप जातियों में एक है ।  

पासी जाति अवध की प्राचीन भारशिव है  [[ ब्रिटिश विद्वानों  ने भी पासी जाति  की उत्पत्ति भारशिवो से है यह बताया है ]]  


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   [[ बदलते हुए समय चक्र में भारशिव वंश पासी जाति  ]]

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         नाग , नवनाग , भारशिव , राजपासी ,पासी 

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#अवध_में_पासी_जाति_भारशिव


Articles by :


*Kunwar Pratap Rawat*

BBau university Lucknow

(History p.g )


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