बुधवार, 31 मार्च 2021

29 मार्च 1850 : बाराबंकी के पासी तालुकेदार गंगा बख्श रावत ने अंग्रेजो को हराया था

 31 मार्च 1850 विजय दिवस : राजा गंगाबख्श रावत 

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29 मार्च सन 1850; को पासी तालुकेदार गंगा बख्श रावत ने अंग्रेजो को बराबंकी देवा कसिमगंज के निकट भेटई किले के युद्ध में अंग्रेजो को करारी शिकस्त दी थीं , अंग्रेज सेनापति इलडरटोन को मार गिराया , उस युद्ध के याद में पासी समाज उस दिन को विजय दिवस के रुप में 31 मार्च को याद करता और मनाता है 


29 मार्च सन् 1850 : ( विजय दिवस )




29 मार्च सन् 1850 को झुक रही दोपहरी में अचानक किले की एक रक्षक पासी टुकड़ी प्रकट हुई जिसने कैप्टन विल्सन की फौज़ पर भंयकर आक्रमण कर दिया अप्रत्याशित रूप से आई आफत अंग्रेजो को महाकाल के समान लगी ।

                कैप्टन विल्सन की विक्षिप्त अवस्था को देख , नवाबअली की दोनों नाइन पाउण्डर तोपों ने किले पर गोली बारी शुरू कर दी । पश्चिम की ओर से कैप्टन बारलों ने फौरी कार्रवाही के स्वरूप दस गोले चला दिए । कै बारलों की अग्रिम टुकड़ी के सूबेदार मेजर ने द्वार पर एक बनावटी झपट्टा किया । 

                                   किले की रक्षक टुकड़ी बड़े इत्मिनान के साथ अंदर लुप्त हो गई । सूबेदार मेजर ने उसका पीछा किया । कैप्टन विल्सन ने फौरन कैप्टन बोयलू और अपने बिखरे हुएं आदमियों को एकत्र करके सूबेदार मेजर के पीछे हो लिए । चिन्तित और उत्तेजित कैप्टन विल्सन अंग्रेजी अफसरों व सैनिकों को खोज खोज कर , नाइन पाउण्डर गन के साथ बाह्य द्वार से भीतरी भाग में ढकेल दिया । यह फौरी कार्यवाही कैप्टन विल्सन ने सुरक्षित स्थान प्राप्त करने की लालसा में की थी । 

       किले से पासी सैनिकों की एक रक्षक टुकड़ी पुनः अवतरित हुई और बाँसों से बने प्रवेश द्वार के फाटकों को बन्द करके लुप्त हो गई । इन फाटकों की यह विशेषता थी कि- गोलियों की बाढ़ भी इनको अधिक क्षति नहीं पहुंचा पाती थी । बन्द कपाटों को खोलने के लिए अन्दर और बाहर के अंग्रेज़ सैनिकों ने प्रयत्न करने शुरू कर दिए , कुछ तो नाइन पाउण्डर गन लेने के लिए दौड़ पड़े । उस समय यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो गई


        कि " खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे " 

 

                                 अचानक किले से दनादन तीरों व गोलियों की बरसात होने लगी । , बाह्य द्वार का ऊपरी भाग भी आग बरसाने लगा । अंग्रेज़ी सेना के छक्के छूट गए । अब तक की मुठभेड़ों में अंग्रेज़ी सेनाओं को सामने की लड़ाई से पाला पड़ा था , उसमें दाँव - पेंच या छद्म युद्धनीति का प्रयोग हिन्दुस्तानियों के द्वारा नहीं के बराबर था । पासी जाति गुरिल्ला युद्ध करने में माहिर थी जों उनके परंपरागत युद्ध करने की आदतों में शमिल था ऊपर से राजा गंगाबक्स रावत ने जिस युद्धनीति का प्रयोग किया उससे अपने आप में एक कुशल योद्धा साबित हुआ । गंगाबक्स रावत की युद्धशैली में पासी समाज के वीर योद्धाओं की जाँबाज़ी और फुर्तीलेपन का अपना एक विशेष महत्व था । 

                   अंग्रेज़ों के समक्ष पुनः यह याद ताजा हो गई कि- पासी जाति युद्धनीति में पारंगत है । अपने में वीरता , दृढ़ता और निभर्रता का अमरपाठ समायोजित किए हुए है । सारी परिस्थितियों को देखते हुए यह तो स्पष्ट था कि कैप्टन विल्सन की फंसी सैनिक टुकड़ी न तो आगे बढ़ सकती थी , न तो बाहर निकल सकती थी पासियो ने ऐसा घेरा बनाया की अंग्रेज थर्राने लगे उनकी सांसे मानो थम सी गई थी , उनको बस एक हि सहारा था कि बची हुई बाहरी अंग्रेज सैन्य टुकड़ी ही इस दयनीय दशा से उद्धार करेगी , बौखलाए हुए अंग्रेज किले की दीवारों पर गोलीबारी कर रहे थे ताकि आगे का कोई रास्ता मिल जाए परन्तु यह सभी कोशिशें बेकार हुई जा रही थी । गोलाबारी की ध्वनि सुनते ही बाहरी मोर्चाबन्दियों की विभिन्न सैनिक टुकड़ियों के अधिनायकों ने किले के कमज़ोर दिखने वाले हिस्से पर आक्रमण करने के आदेश दे दिए ।

                दोनों ओर की घनघोर गोलाबारी से सम्पूर्ण वातावरण आतंकित हो उठा था । अर्थहीन गोलियों की तड़तड़ाहट , तोपों की गड़गड़ाहट ही अंग्रेजों की विपुल युद्ध सामग्री का हास किए जा रही थी । पश्चिम की ओर से कैप्टन बारलो के सैनिको के अंदर पहुंचने के साहसिक प्रयास सीढ़ियों की लघुता कारण नाकामयाब और बुरी तरह घायल हो रहे थे । पूर्व की ओर से नवाबअली किसी भाँति किले के भीतर पहुँच कर भीतरी खाई के घेरे में कैद हो गया था । नवाबअली के बहुत से साथी निरूउद्देश्य प्रयासों में खाइयों में गिर पड़े थे । कैप्टन विल्सन भी घेरे में फंसे पड़े थे । पूर्व से सफ़शीकन ख़ान के प्रयास भी सफल नहीं हो पा रहे थे , इनके लिए भीतरी खाई एक बड़ा अवरोध उत्पन्न किए हुए थी । किले के भीतर प्रवेश करने के प्रयत्न में अंग्रेजी सैनिकों की एक विचाराधीन संख्या काम में आ रही थीं । कैप्टन विल्सन के किले में पहुंचते ही , 45 मिनटों में अपनी पार्टी की सारी युद्ध सामग्री समाप्त कर दी थी । इस पूरे अभियान और साहसिक प्रयत्नों के क्षणों में लेफ्टिनेंट इलडरटोन ने अपने कौशल और वीरता का अनूठा परिचय दिया । इलेंडरटोन का यह परिचय अंग्रेजों के लिए एक दुःखद गौरवमय था ।

                             परन्तु वास्तविकता इससे परे थी पासी राजा गंगाबक्स रावत ने अपने चक्रव्यूह में कैप्टन विल्सन को फाँस कर जो भयंकर गोरिल्ला युद्ध किया , वह युद्धशास्त्र में अपना एक अलग ही स्थान बनाए हुए है किले की रक्षक सेना अंग्रेजों को गोलियों से भून रही थी और उनके अदृश्य भयंकर तीर गाजर - मूली की तरह काट रहे थे । अंग्रेजी सेना में भगदड़ मची थी । लोग त्राहि - त्राहि कर रहे थे । हताश व सहमे , भयभीत निगाहों से इधर - उधर अपने - अपने छुपने का स्थान ढूंढने में गतिशील थे । ऐसे में लेफ्टीनेन्ट इलडरटोन की गर्दन में गंगाबक्स रावत का सनसनाता हुआ भयंकर तीर लगा , उससे गिर कर , इलडरटोन ने अपनी इहलीला समाप्त कर दी थी । कैप्टन विल्सन और बायलू के अर्थहीन गोला बारूद की बरबादी उनकी साथियों के मौतें , किले में प्रवेश करने के प्रयासों की असफलताएँ सामने दिखाई पड़ रही थी । 

              अंग्रेन सेनानायक अपनी एक तोप गन और साथियों की लाशों को छोड़ कर पीछे की ओर हटने लगे । पासी वीर गंगाबक्स रावत इस बात से पूरी तरह अवगत थे , कि विपुल युद्धसामग्री और असंख्य सैनिक सहायतार्थ अंग्रेज लखनऊ से आ ही रहे होंगे , जिनके सामने स्वयं और अपने सैनिकों की आहुति देना बुद्धिमत्ता न होगी । सहायतार्थ ब्रिटिश सेना के आने के पूर्व ही अपनी युद्ध योजना बना लेनी है । पासी वीर गंगाबक्स रावत ने अपने सभी बड़े / छोटे गढ़ों की सेनाओं को पूर्व के घने जंगलों के रास्ते , जिधर गालिब जंग की टुकड़ी तैनात थी आधी रात में बाहर भेज दिया 


कैप्टन विल्सन को लखनऊ से एक बड़ी सेना के चलने की सूचना प्राप्त हो गई थी । जिसमें अश्वारोहियों और पैदल सेना के साथ भारी तोपें भी हैं । सेना के आने पर छोड़ी गई तोप ढूंढ ली गई थी । लेफ्टिनेंट इलडरटोन का शरीर अंतिम संस्कार के लिए लखनऊ भेज दिया गया था 

      

                               इस आक्रमण में ब्रिटिश सेना के 19 सैनिक मारे गए , 57 घायल हुए , गंगाबक्स रावत के भेटई किले में 11 आदमी मरे और 19 घायल हुए थे । " गंगाबक्स रावत अपनी सैन्य शक्ति के साथ गालिब जंग की तैनात टुकड़ी की ओर मुँह मोड़ा है । कैप्टन विल्सन को यह समाचार मिलते ही , उसके हाथों से तोते उड़ गए अंग्रेज़ी सेना में हड़कम्प मच गया । उनका यह विचार कि अब शेर ( गंगाबक्स रावत ) जंगल में फंस चुका है । पर वह जंगल से निकल कर उस इलाके की ओर जा रहा है , जिसे अंग्रेज़ी सरकार बिल्कुल सुरक्षित समझती थी । जितनी देर अंग्रेज़ी सेना को योजना बनाने में लगे , उतने में तो वह शेर ( गंगाबक्स रावत ) कहाँ से कहाँ पहुँच चुका था । अंग्रेज़ सेनानियों को पता चल गया कि शिकार हाथ से निकल चुका है । उस झल्लाहट भरे क्षणों में पासी सैनिकों के गोरिल्ला युद्ध की याद आते ही अंग्रेज़ सैनिकों में सिहरन पैदा हो जाती थी ।  


नीचे अंग्रेज द्वारा सन 1858 में बनाया गया कसीमगंज के भेटई किले की तस्वीर जहां पासी बसते थे जों पासियो द्वारा देश के लिए किए गए संघर्ष की गवाह थी 

इस किले को बाद मे अंग्रेजो ने मटियामेट कर दिया था 


इस दिन को पासी समाज विजय दिवस के रुप मनाता आया है विजय दिवस पर पूरे। समाज को हार्दिक शुभकामनाएं एवं यह आशा है की पूरा समाज इस गौरव को याद करे और दिलो में संजोए ।


उक्त लेख - लेखक स्व श्री के के रावत जी के किताब से लिए गए है 


एवं स्लीमन की डायरी का अध्ययन कर यह व्रतांत आपके समक्ष प्रस्तुत किया हूं


The Pasi Landlords

( कुंवर प्रताप रावत )


#31_मार्च_1850_विजय_दिवस

#भारशिव_वंश_पासी_जाति 

#पासी_जाति_का_इतिहास

मंगलवार, 16 मार्च 2021

महराजा छीता पासी का इतिहास [ History of Sitapur ]

 ✅🌿सीतापुर जिले का इतिहास [ History of Sitapur ]

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#सीतापुर  


✅✅ महाराजा छीता पासी की नगरी ✅✅✅


सीतापुर जिले की जनसंख्या वेबसाइट के अनुसार 4483992 है तहसील 8 है 19 ब्लॉक 27 पोलिस स्टेशन हैं 

 

#History


सीतापुर का पुराना नाम छितया पुर था जिसे राजा छीता पासी ने बसाया था क्या आप जानते है ?


Ain-i-Akbari के "अनुसार इसका पुराना नाम छितिया पुर था" और लोकमत के अनुसार राजा छीता पासी ने अपने नाम से छितिया पुर नाम का एक नगर बसाया था जिसके ध्वंसवशेष टीले के रुप मे आज भी देखा जा सकता है जिसे पहले छीता पासी का टीला नाम से जाना जाता था "अवध गजेटियर" के अनुसार कालांतर में इसका नाम अपभ्रंश होकर सीतापुर हो गया । यानि राजा छीता पासी के नगर का हमे साहित्यिक स्रोत ain- i-akabri मिलता है जों हमे 16 वी सदी की यहां की भागौलिक इतिहास का बोध कराता है वहीं सीतापुर गजेटियर 1905 के अनुसार 11-12 सदी में पासी यहां बड़े हि शाक्तिशाली बने रहे जिनका अकबर के समय भी यहां स्वतंत्रता देखी गई थीं जो बाद में निरंतर हुऐ विदेशी आक्रमण से पासी जाति अपने मुख्य भूमि से विस्थापित हुए उससे पहले जब यहां फिरोज़ शाह तुगलक का शासन आया था उसने बहराइच में मसूद गाजी की कब्र तक यात्रा की और रास्ते में यहां पासियो को जीतकर तुगलकाबाद नगर आबाद किया । उसके 30 सालों बाद पासियो को अपनी शक्ति का पुन : आभास हुआ और 1398 ईस्वी मे राजा लहरी पासी के नेतृत्व में तुगलको को हराकर तुगलकाबाद का नाम बदल कर अपने नाम से लहरपुर रख दिया था और पासी सत्ता कायम की और (1398-1416 AD ) 18 वर्षो तक राज किया । लगभग 18 वर्षो तक इस जिले को तुगलको के आतंक से निजात दिलाई

 

Note - आज भी लहरपुर के मुस्लिम समुदायों मे लहरी पासी को बड़ा क्रूर और अत्याचारी शासक के रुप मे स्वीकार करते है  


सीतापुर का सबसे शाक्तिशाली राजा लहरी पासी था जिसे कहीं कहीं " लोहारी पासी" लिखा गया है ।


राजा छीता पासी और सीतापुर का इतिहास

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Ain-i-Akbari के "अनुसार इसका पुराना नाम छितिया पुर था" और लोकमत के अनुसार राजा छीता पासी ने अपने नाम से छितिया पुर नाम का एक नगर बसाया था जिसके ध्वंसवशेष टीले के रुप मे आज भी देखा जा सकता है जिसे पहले छीता पासी का टीला नाम से जाना जाता था "अवध गजेटियर" के अनुसार कालांतर में इसका नाम अपभ्रंश होकर सीतापुर हो गया ।

                    राजा छीता पासी का समयकाल 12 वी सदी माना जाता है राजा छीता पासी कन्नौज के राजा जयचन्द और आल्हा -ऊदल एवं लखनऊ बिजनौर के महाराजा बिजली पासी उन्नाव के राजा सातन पासी समकालीन थे , ऐसा मत है कि गांजर के कर वसूलने के प्रश्न को लेकर कन्नौज के राजा जयचन्द से बात बिगड़ गई थी और जयचंद ने गंजार का कर वसूलने के लिए गंजार पर चढ़ाई की थीं लेकिन असफल रहा लगातार 12 साल तक वह पासी राजाओं से कर वसूल नही कर पाया और वह पराजित भी हुआ गंजार के समस्त पासी राजाओं को लामबद्ध कर महाराजा बिजली पासी ने जयचंद से युद्ध के लिए मोर्चाबंदी की थी जिसमे राजा छीता पासी भी शमिल थे , जिनका किला वर्तमान सीतापुर में भग्नावशेष रुप संरक्षित है जिसमे राजा छीता पासी की आदमकद मूर्ती स्थापित है


सीतापुर के बारे मे एक किदवंती और भी है की रामायण के पात्र राजा राम की पत्नी सीता के नाम से इस क्षेत्र का नाम सीता पड़ा । 

 

              सीतापुर में पासियो द्वारा शासित केंद्र - मोहाली , मितौली , सिधौली , बिसवां , लहरपुर , खैराबाद , मिश्रिख, मुहमदाबाद आदि था जिनके बारे में कहा जाता है अवध गजेटियर के अनुसार इनमें से मितौली का राजकुमार रजपासी हंसा बड़ा ही शाक्तिशाली था जिसका मोहाली के अहिबंस राजपूत राजा के बेटी के प्रश्न को लेकर विवाद हो गया था उस समय राजा हंसा बड़ा ही शक्तिशाली था जिसके सामने राजपूत राजा असहाय थे अन्ततः राजपूत अपनी बेटी की शादी राजपासी राजा हंसा से करने के लिए तैयार हो गए , परंतु राजपुतो ने छलपूर्वक बारात विदाई के समय राजा हंसा सहित सारे हजारों पासी सैनिकों के खाने में नशीला पदार्थ मिलाकर परोसा गया जब राजा हंसा सहित उसकी सेना बेहोशी की हालत मे पहुंचे तब मौका पाकर तुरंत अहिबंस राजपूतों ने धोखे से हमला कर बेहोश सैनिकों पर हमला कर सबको मार डाला इसी छल मे राजपासी हंसा वीरगति हुऐ । 

                     अवध गजेटियर और सीतापुर गजेटियर उस समय हुऐ इस भयानक कृत्य की पुष्टि करता है । जो कभी सीतापुर की धरती पर घटित हुई थी राजपूतों और मुसलमानों से पूर्व यहां पासी जाति का शासन था । 


स्रोत -

Oudh gazzettear N to z 1877

Sitapur district Gazetteerr 1905 


( The Pasi Landlords )

      कुंवर प्रताप रावत


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