अलाउद्दीन खिलजी और पासियो का संडीला संघर्ष
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इल्तुतमिश ( 1210-1226 )A.D
शासक बनने के बाद इल्तुतमिश को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। 1215 ई. से 1217 ई. के बीच इल्तुतमिश के प्रबल प्रतिद्वन्दी एल्दौज और कुबाचा के साथ-साथ अवध की निर्भीक पासी जाति जो अपने अड़ियल रुख के लिए जानी जाती थी,उनसे संघर्ष करना पड़ा, और संडीला जल्द हीं तुर्कों के कब्जे में कुछ समय के लिए जरुर चला गया था , लेकिन पासियो ने अवध में विद्रोह जारी रखा --- पासियो ने पुन: काकोरी मलिहाबाद और संडीला को कब्जे में कर लिया क्योंकि संडीला एक बहुत विशाल किला और दुर्ग था जो पश्चिम से हो रहे आक्रमण को रोकने के लिए एक सैनिक छावनी थी जिसे राजा सलिहा पासी ने बसाया था ।
अवध गजेटियर अनुसार : - The whole of north Hardoi was a jungle in his time. In this forest Piháni , which means the place of concealment , was founded by Sadr Jahan . Prior to this Bilgram had been founded in the reign of Altamsh (1217 A.D.) by Shekh Muhammad Faqih. Sandila had been conquered from the Pasis in the reign of Alld - ud - din Khilji , but till Akbar's reign these settlements had been mere outposts - military garKhilji.
अर्थात :- पूरा उत्तर हरदोई एक जंगल था। इस जंगल में पिहानी, जिसका अर्थ है छिपने का स्थान, की स्थापना सदरजहाँ ने की थी। इससे पहले बिलग्राम की स्थापना अल्तमश (1217 ई.) के शासनकाल में शेख मुहम्मद फकीह ने की थी। संडीला को अल्ल्ड-उद-दीन खिलजी के शासनकाल में पासियों से जीत लिया गया था,
अर्थात् इसका अर्थ यह निकलता है की इल्तुतमिश
के समय भी और आगे भी अवध का हरदोई क्षेत्र पासियो के चिराग तले सुरक्षित था पर संघर्ष जारी था । अंग्रेज विद्वानों ने इस बात का वर्णन किया है कि यहां की आदिम जातियां ( पासियो ) ने मुस्लिम शासकों को बड़ा तंग कर के रखती थी ।
भारतीय इतिहास में आखिर क्यों नही पढ़ाया जाता पासियो के संघर्षों को ....... आखिर क्यों...!
उस समय अवध का पश्चिम उत्तर कोना पासियो के मजबूत पकड़ में था
आगे चलकर भयंकर युद्ध हुए पासियो का साम्राज्य पतन की ओर हो चला , अपनी जड़ बिठाने के लिए राजपूतों ने भी चाल चले उनके पास सुनहरा मौका था ,उनसे समझौते कर लिऐ और मुस्लिम ताकतों के साथ मिलकर राजपुतो ने पासियो को उनके ही सम्राज्य से उखाड़ फेंका
लेकीन यह अड़ियल पासी जात कहा मानने वाली मौका पाते ही विरोध और विद्रोह कर देती , जंगलों में शरण लेकर कच्चे मिट्टी के किले बनाकर रहने लगी , सीमित उपलब्धता में राज करते रहे । पासी जाति जो आदतन युद्धरत जाति रही वह अब गुरिल्ला युद्ध करने लगे ।
अब पहले जैसे ये ताकत में ना रहे , आगे के 50 सालो तक मातम छाया दिखाई देता है........ कुछ सालो बाद पासियो को अपनी शक्ति का पुन: आभास होता है अड़ियल राजा लहरी पासी के नेतृत्व को पाकर पासियो ने कि एक शाक्तिशाली सेना तैयार कर ली थी वह एक दिलेर निर्भीक योद्धा था जो तुर्की के लिए काल के समान था ........।
शुरुवाती प्रतिरोध में फिरोज शाह तुगलक से बिकट युद्धों के बाद पासी परास्त हुए और लहरपुर से ( 1370AD के दशक में ) निष्काशित हुए ,जहा पासियो को जीत कर उनके जगह को फिरोजशाह तुगलक ने नाम बदलकर तुगलकाबाद कर दिया
लेकिन फिर...
30 साल बीत गए....
फिर अचानक 1398 में तुगलकों को कमजोर होता देख सही मौके के तलाश में पासियो ने सीतापुर खीरी में विद्रोह कर दिया और इस बार विद्रोह का केंद्र बना लहर पुर जिसका राजा लहरी पासी था ..
फिर पासियो को अपनी शक्ति का पुन: आभास हुआ और फिर 1398 AD में लहरी पासी के नेतृत्व में पासियो ने बगावत कर दी तुगलको के खिलाफ़ युद्ध अभियान छेड़ दिया और सीतापुर सहित उत्तर अवध को आज़ाद करा लिया , अपनी पुरखों के जमीनों पर पुन: काबिज होकर तुगलकाबाद का नाम बदलकर अपनें नाम से लहर पुर रख दिया, राजा की पदवी धारण कि और 18 वर्ष तक राज किया । राजा लहरी पासी का समय काल गजेटियर अनुसार ( 1398-1416 )AD
आगे जारी रहेगा....................!
The Pasi Landlords