रविवार, 15 जनवरी 2023

bhar pasi cast । भर पासी जाति का इतिहास।


 भर ही पासी हैं।,,,

लग भग सभी विद्वान जिन्होंने भारत में जातिओ पर लेखनी चलाई है या जनगणना आयुक्त में रह कर पुस्तकें लिखी हैं सभी ने एक स्वर से यह स्वीकार किया है कि आधुनिक जाति पासी,ताड़ माली प्राचीन समय की भर या भारशिव जाति है।और जिसका अवध पर शासन रह चुका है। परंतु कुछ मंद बुद्धि और चालाक लोग इस जाति को आए दिन अपमानित करने से नहीं चूकते है,और पासियो की पसीने से उत्पत्ति की रट लगाते रहते हैं। जबकि अपनी जाति राजभर को  भरद्वाज कहीं भर पटवा  आदि बताते रहते हैं ऐसे एकांगी भद्दी सोच वाले वकील को जवाब देना लाजमी हो जाता है 

वे यह भी जानें कि भरद्वाज वे थे जो बृहस्पति द्वारा अपनी छोटी भाभी उतथ्य की पत्नी ममता से बलात्कार स्वरूप पैदा हुए थे यह भरद्वाज नाम का अर्थ है। पासी ने कभी यह नहीं कहा कि वह परसुराम  से उत्पन्न है वह तो भृगु से अपनी पैदाइश जरुर कहा, क्यों कि भृगु वरुण सुत और पाश धर है।भरपटवा तो सभी जानते हैं बुन कर या कोरी,धागे से आभूषण गूंथने वाले कहे जाते हैं।

चार्ल्स एल्फ्रेड ईलिएट ने क्रोनिकल्स ओफ उन्नाव नामक पुस्तक सन् 1862 मे लिखी थी जिसका अमुक एकांगी चंट वकील गलत तरीके से पृष्ठ २७ पर के उद्धरण को चालाकी से  राजपासी के स्थान पर राज पूत कहता है अपने वीडियो में और जिस राजभर को बार बार दोहराया करता है,उसका इस पृष्ठ सत्ताइस पर कहीं नाम भी नहीं है ।नाम है तो चेरु और भर तथा राज पासी का  पूरे उत्तर प्रदेश पर राज्य होने का। जिक्र मिलता है देखें  ,,,

We find Ajoodhia destroyed, the Soorajbunses utterly vanished and a great extent of country ruled over by oborigines called Cheerusin the fo East Bhars in the centre and Raj pasis in the West,

 

हिंदी अनुवाद इस प्रकार से होगा ,हम पाते हैं कि अयोध्या को नष्ट कर दिया गया था और सूर्यवंशी लोगों को निकल दिया गया था तथा राज्य के बड़े  भू भाग पर आदिवासी कहे जाने वाले चेरु पूरब में,मध्य में भर तथा पश्चिम में राज पासी राज्य करते थे।

   इन वकील महाशय यद्यपि यह सम्बोधन इनके लिए उचित नही है पर पेश गत  गरिमा हेतु ही सही,  कहना जायज है क्योंकि मैं भी लां ग्रेजुएट हूं, राज पूत आदिवासी कहा है,राजपासी कहते तो इनके राजभर बन्धु ही नाराज़ हो जाते।पर सत्यता का बिलोपन हो गया ।वह इसके लिये जायज ठहरा।

 क्रुक महोदय कहते हैं कि अपनी पुस्तक में,

 पासी सदैव यह दावा करते आए हैं कि वे भरों से  सम्बंधित हैं और मिर्जा पुर के पासी तो यही कहते हैं हम स्थानीय तौर पर भर है।और आरख पासी से सम्बंधित क्रिया शील समूह भर से निर्मित हुआ है।

    The Pasis always claim kindred with the Bhar ,si in y Mirjapur the local Pasi,and perhaps also kindred tribes arakhs are Functional groups formed from the Bhar tribes.

     इसी तरह से ब्लंट महोदय तो साफ तौर पर कहते है१९२८मे अपनी फ्रेंचाइज रिपोर्ट मे भरो का दू सरा नाम पासी हैं।फिर भी उनकी पुस्तक दि कास्ट सिस्टम ओफ नार्दर्न इंडिया के पृष्ठ 40 का

अवलोकन करें,,,,

  There are several pairs of castes each of which possess a section by the name of the other. Such pairs are the,,,,,, 

Ahir..Gujar

Barai..Tamoli

Arakh,,Khangar


Bhar,,Dusadh

Bhar,, Pasi and

Bind,,Kevat. 

      यहां पर बहुत सी जातियों के युग्म समूह  हैं जो एक अन्य दूसरे वर्गीकृत  समूह गत नाम से भी जानें जाते हैं।जैसे,,,,अहिर गुजर, बराई तमोली,आरख खंगर,भर दुसाध,भरपासी और बिन्दु केवट।

आंग्ल लेखक शैरिंग तो यही कहते हैं अपनी पुस्तक हिन्दू ट्राइबस ऐन्ड कास्ट्स में भर पासी एक उप जाति है, देखें,,,,

The bhar are the some times classed among the Pasi .They have a tradition that is ancient times they were one and the same race which is  indeed possible.

हिंदी अनुवाद,भरो को किसी समय  पासी में गिना जाता था,पासी में परम्परा यह पाई जाती थी कि पासी और भर एक  ही जाति हैं जो सम्भव लगती हैं।

पुस्तक ,भारत के लोग ,लेखक के,एस, सिंह वालूम तीन में पृ,सं 1070 पर यह लिखा है,सन् 1993

 कि पासी जाति ने अपनी उत्पत्ति ऋषि भृगु से बत लाते है, हीरालाल व रसेल का यह मत है कि राज पूतो द्वारा पराभव के पहले अवध के एक हिस्से पर पासी काबिज थे। और ब्राम्हण  लिजेन्ड के  हिसाब से एक परसुराम के पसीने से उत्पन्न हुए हैं। ऐसा ब्राह्मण कहते हैं क्योंकि क्षत्रियों से उन्हें संघर्षरत रखना था। पासी ने अपनी उत्पत्ति भृगु से जरुर कहीं क्यों कि उनके पिता वरुण पाशधर हैंभृगुवंशीपासी वीर दलका संगठन  श्री गुरु चरन देव  हरदोई ने सन् 1940 मे किया था। उनका बिल्ला मेंरे  पास है।यहां पर यह भी दिया है कि इनकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द पाशिक से हुयी है श्री बी,एन लूनिय भी इसे सही मानते हैं, किताब जाति वर्ग और व्यवसाय, में घूर्वे भी यही कहते है अर्थात पाश का प्रयोग करने वाला समूह।फिर भी पासी को हेय बतलाने का आदी वकील पसीना पसीना चिल्लाने से नहीं चूकता। अपना जलवंशी बिन्दु केवट से रिश्ता छिपाता रहता जो इसकी सजातीय लेखिका अमृता राजभर स्वयं कहती ।

     अब गुप्ता युग को देखते हैं तो जिन से भारशिव राजा हारे तो उनके द्वारा गठित एक विभाग  पाशिको को आंन्तरिक सुरक्षा में पुलिस में रखा गया  ।विभाग का नाम पाशाधिकरण था।

         आरक्षण पुलिस के अधिकारी थे दंड पशाधिकारी, इसमें साधारण सिपाही और गुप्तचर दोनों सामिल थे, साधारण सिपाही के पास  लाठी और रस्सी थी।  भारतीय प्राचीन संस्कृति, पुस्तक, लेखक बी, एन लूनिया,पृ,सं,  528 

 इसी को देख कर लोगों में यह कहावत पाई जाती है कि पासी का लट्ठ पठान ही झेले। अर्थात औरों के वश की नहीं ।  हम ऐतिहासिक दृष्टि से भारशिव नाग राजवंश से निकल कर आए दंड पाशिक, लाठी वालें सिपाही , भर पाशी हैं और रहेंगे,पाशी नव युवक जाग चुका है।  


भर पासी चेरू और राजभर,,,,, 

       इस प्रस्तुत लेख में हम उपरोक्त सभी जातियों की जनसंख्या महत्व और सम्बंधित क्षेत्रीय स्थिति पर प्रथक प्रथक प्रकाश डालने की कोशिश उपलब्ध पुस्तकों के विवरणों के  आधार पर करने जा रहे हैं।

 सबसे पहले हम चार्लस अल्फर्ड एलिएट की पुस्तक, उन्नाव का वृतांत ,क्रोनिकलस  आफ  उन्नाव के पृष्ठ सं, २७ के उस संदर्भ को लेते हैं राजभर के वकील,व इतिहासकार गलत बयान बाजी करते हैं । कोई कहता हैं राजपासी की जगह पर राजपूत या कोई कहता है कि हमने पश्चिम का क्षेत्र पासी सैनिकों को दे दिया था और पूरब का क्षेत्र सैनिक चेरु लोगो को दे दिया था। और हम राजा थे यानी राजभर  बीच आवध में ,जो सरासर झूठ है क्योंकि अवध में इनका कोई उल्लेख नही है पूरे २७ पृष्ठ पर। उल्लेख है तो भर लोगों का। देखें,,,,

            ,Ajoodhia destroyed, the Soorajvanshis  utterly vanished,and a great extent of the country ruled by aborigines called Cheeroos inthe

 far east,Bhars in the centre,and

Rajpasis in the West.

      अनुवाद, अयोध्या को नष्ट कर ,सूरज वंशी

 लोगो को निष्कासित कर दिया गया था।राज्य उत्तर प्रदेश के बड़े भू भाग पर,पूरब में चेरू,मध्य में भर और पश्चिम में राजपासी राज्य कर रहे थे। 

         इस में कोई किसी का अधीनस्थ नही था सच बात तो यह है कि यह नाग वंश भारशिव का शासन था और सब एक ही थे छोटे बड़े का प्रश्न ही नही उठता।कौन किसका सैनिक था सब झूठ का पुलिंदा है। राजभर पूर्णता गायब है 

       अब हम भर और पासी की उस जनगणना को दे रहे है जो सन 1881 में जौन नेश्फील्ड,आई,सी,यस सेंनसस सुपरीन्टेन्डेट ने दी है और ग्यारह जातियों को एक  शिकारी की श्रेणी में रखा है। यथा वो जातियां कुछ इस तरह है ,,,,,

बौरिया,,,,,,,,22096

बहेलिया,,,,,,67360

भर,,,,,,,,,,,,360270

आरख,,,,,,,,,64713

धानुक,,,,,,,,,,12341

खंगर,,,,,,,,,,32304

पासी,,,,,,,,,,,1049961

खरवार,,,,,,,,578

धिंगर,,,,,,,,,,,4914

दुसाध,,,,,,,,,+ ++

 खटिक,,,,,,,252030

      यहां जो जन गणना की तालिका दी गई है उसमें सबसे ज्यादा जनसंख्या पासी की है दश लाख उन्चास हजार नौ

 सौ एकसठ।और दूसरा नम्बर की जनसंख्या भर की है तीन लाख,साठ हजार,दो सौ सत्तर।

      पासी भर से तीन गुना अधिक है भर से।

 अवध में भर नही है वे सभी जिलो में पासी में बदल गया समुह मौजूद हैं। इस लिये शेयरिंग महोदय कहते हैं,कि पासी अ्वध में शक्ति शाली है और संख्या बल में,राजभर, भारत,भर पटवा सबको पीछे  छोड बहु संख्यक है भर लोग। यानी पासी।    They are very powerful in Oudh, पृष्ठ 357 हिन्दूट्राइब एन्ड कास्टस इसी पुस्तक में पृष्ठ सं,399 पर वे फिर कहते हैं कि पासी लोगों में यह परम्परा पायी जाती है कि प्राचीनकाल में भर पासी एक ही #जाति थी।जो वास्तव में सम्भव है।   They have a tradition that  in ancient times they were One and the same race which is indeed possible. p age 399.

       अब हम चेरो की जन संख्या देखते हैं तो हमें ताजे आंकड़े मिल जाते हैं सन 1981 में यह लोग,सत्रह हजार दो सौ उन्तालीस थे ,17339 और यह लोग भार्गववंशी च्वयन  के कुल से जोड़ते है #पासी भी #भार्गव यानी भृगु वंशी अपने को कहते आये   है जिसमें #परसुराम आदि पैदा हुए पौराणिक कथा के अनुसार, पर है ए #भारशिव ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से।

    राजभरो की जन संख्या सन1872 में मात्र 13481 ,तेरह हजार चार सौ एक्यासी पाई गई थी और जिले थे जौनपुर,आजमगढ, #गाजीपुर, गोरखपुर, और बस्ती ।सिर्फ पांच जनपद ही।

     दूसरी एक नई सूचना इलाहाबाद हाईकोर्ट से यह प्राप्त हुई है उनका इतिहास कार और उनके वकील सब लोगो ने पांच की संख्या में यह एक पेटीशन प्रस्तुत किया हैं कि हम राजभर लोग #पासी ताडू माली की उपजाति #राजभर है। हमें आरक्षण दिया जाय।तीन चार उसमें शपथ पत्र भी लगाये गये हैं।बिडम्बना देखिए पासी से लड़ेगे भी और पासी भी बनना चाहतें हैं।


लेखक इतिहासकार रामदयाल वर्मा

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