गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

Maharaja Daldev Pasi महाराजा डालदेव पासी

                                                   राय बरेली के पासी राजा डालदेव  राय बरेली के पासी राजा डालदेव राजा डालदेव का राज्य डलमऊ में था ये चार भाई थे, डालदेव, बालदेव और ककोरन और राजा भावों । राजा डालदेव ने अपना राज्य चारों भाइयों में बांटकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इन तीनों का राज्य गंगा नदी तथा सई नदी के मध्य पूर्व में आरख ग्राम से लेकर पश्चिम में खीरों तक था। राजा डालदेव का का किला लगभग 12 बीघे के क्षेत्र में था। इस किले के अंदर सैनिक छावनी थी। किला गंगा किनारे काफ़ी ऊंचाई पर था किले के चारों ओर 30 मीटर ऊंचाई पर गहरी खाई थी जिसे गंगा नदी के पवित्र जल से भरा जाता था। यह किला अब टीले के रूप में है। बालदेव का किला सई नदी के किनारे था। राजा बालदेव ने ही राय बरेली नगर की नींव डाली थी और उसे बसाया था। इस राजा ने भरौली नाम के किले का निर्माण कराया था। कालांतर में भरौली शब्द बिगड़कर बरैली हो गया था। राजा ककोरन जगतपुर से 12 किलोमीटर दूर डलमऊ तहसील के अंतर्गत सुदमानपुर में राजा ककोरन का किला था। इनके सबसे छोटे भाई राजा भावों ने राय बरेली से बीस किलोमीटर पूरब 200 मीटर लम्बा 200 मीटर चौड़ा मट्टी का किला बनवाया था उन्होंने राजभर पासियों की एक बड़ी सेना तैयार की थी। राजा डालदेव और इनके अन्य भाईयों के पासी राज्य की खुशहाली और संपन्नता जौनपुर के शासक इब्राहीम शाह शर्की 1402-1440 के साम्राज्य में एक काँटे की तरह थी इब्राहीम शाह ने डालदेव के राज्य पर आक्रमण कर दिया। डालदेव के भाई ककोरन ने सुदमानपुर में इब्राहीम से भीषण संघर्ष किया, लड़ते हुए ककोरन वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद इब्राहीम डलमऊ के राजा डाल देव पासी के ऊपर आक्रमण कर दिया ,ओ बहुत पहले से योजना बना रहा था,लेकिन वो सफल नही हुआ ,,क्योकि उसकी सेना राजा की सशक्त सेना के सामने टिक नही पाती थी,,वो हमेशा से मोके की तालाश मे रहता था,इसी लिऐ उसने राजा के एक बघेल सरदार को लालच देकर उसने अपने तरफ मिला लिया,,उस बघेल सरदार की गद्दारी से पूरा राज्या तहस महस हो गया,उसने नावाब को बताया हमले का सबसे अच्छा मौका होली के दिन रहेगा,क्योकि उस दिन पूरा राज घराना जश्न मे डूबा रहता है और सेना भी शराब के नशे मे लपरवाह रहती है ,फिर क्या था,उस गद्दार बघेल ने रात को किले के पीछे का दरवाजा खोल दिया, और रात को हमला होने से पूरा प्रशासन हिल गया, उसने बूढो,बच्चो को भी नही बक्शा,धोखे से हुए हमले से सब तहस महस हो गया, राजा की हत्या कर दी गयी और जब वो जालिम राजा की रानियो क तरफ बढा, राजा की दोनो रानियो ने आग मे कूद कर जान दे दी लेकिन अपने उपर दाग नही लगने दिया ,उन राजमाताओ को मेरा प्रणाम,,तब से आज तक सदियों के बाद भी उस ईलाके मे होली नही मनायी जाती। होली का पर्व एक सप्ताह बाद मनाया जाता है।


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पाासी राजा डालदेेेव

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

Maharaja Bijli Pasi महाराजा बिजली पासी

महाराजा बिजली पासी
जी का इतिहास महाराजा बिजली पासी बारहवीं शताब्दी पासी राजाओं के साम्राज्य के लिए बहुत अशुभ साबित हुई। इसी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अवध के सबसे शक्तिशाली पासी महाराजा बिजली वीरगति को प्राप्त हुए थे। सन् 1194 ई. में इससे पहले राजा लाखन पासी भी वीरगति को प्राप्त हुए। महाराजा बिजली पासी की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा।बिजली पासी के कार्य शेत्र में विस्तार हो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली पासी ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नटवा के नाम पर नटवागढ़ की स्थापना की।यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली पासी की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी कार्य संचालन की द्रिष्टि से पर्याप्त नहीं था, उसके उत्तर तीन किलोमीटर एक विशाल किले का निर्माण कराया जिसका नाम महाराजा बिजली पासी किला पड़ा। जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं, अब राजा बिजली पासी महाराजा बिजली पासी के नाम से विभूषित हो चुके थे। यह किला लखनऊ जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर सदर तहसील लखनऊ के अंतर्गत दक्षिण की ओर बंगला बाजार के आगे सड़क के दाहिनी ओर आज भी महाराजा बिजली पासी के साम्राज्य के मूक गवाह के रूप में विद्यमान है। महाराजा ने कुल 12 किले राज्य विस्तार के कारण बनवाये थे। 1- नटवागढ़ 2- बिजनौरगढ़ 3- महाराजा बिजली पासी किला 4- माती 5- परवर पश्चिम 6- कल्ली पश्चिम किलों के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। 7- पुराना किला 8- औरावां किला 9- दादूपुर किला 10- भटगांव किला 11- ऐनकिला 12- पिपरसेंड किला। उत्तर में पुराना किला, दक्षिणी में नींवाढक जंगल सीमा सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। इसके मध्य में महाराजा बिजली पासी का केन्द्रीय किला सुरक्षित था। महाराजा बिजली पासी के अंतर्गत 94,829 एकड़ भूमि अथवा 184 वर्ग मील का भू-भाग सम्मिलित था, इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ थी, धान, गेहूं, चना, मटर, ज्वार। बाजरा आदि की खेती होती थी। महाराजा बिजली पासी की प्रगति से कन्नौज का राजा जयचंद्र चिन्तित रहने लगा क्योंकि महाराजा बिजली पासी पराक्रमी उत्साही और महत्वकांक्षी थे। बिजली पासी के सैन्य बल एवं वीर योद्धाओं का वर्णन सुनकर जयचंद्र भयभीत रहता था। लेकिन अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए जयचंद्र की भी इच्छा रहती थी। जयचंद ने सबसे पहले महाराजा सातन पासी के किले पर आक्रमण कर दिया, इस आक्रमण में घमासान युद्ध हुआ और जयचंद की सेनाओं को भागना पड़ा। इस अपमान जनक पराजय से जयचंद का मनोबल टूट गया था। किंतु बाद में जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली और महोबा के शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली पासी के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। आल्हा ऊदल कन्नौज की सेनायें लेकर अवध आये और उनका पहला पड़ाव लक्ष्मण टीला था। इसके बाद पहाड़ नगर टिकरिया गये। बिजनौरगढ़ से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर सरवन टीलें पर उन्होंने डेरा डाला। यहां से उन्होंने अपने गुप्तचरों द्वारा बिजली पासी किले से संबंधित सूचनाएं एकत्र की। जिस समय महाराजा बिजली पासी अपने पड़ोसी मित्र राजा काकोरगढ़ के किले में आवश्यक कार्य से गये हुए थे। उसी समय मौका पाकर आल्हा ऊदल ने अपना एक दूत इस संदेश के साथ भेजा कि राजा हमें अधिक धनराशि देकर हमारी अधीनता स्वीकार करें। यह सूचना तेजी से संदेश वाहक ने महाराजा बिजली पासी को काकोरगढ़ किले में दी उसी समय सातन पट्टी के राजा सातन पासी भी किसी विचार विमर्श के लिए काकोरगढ़ आये थे। संदेश पाकर महाराजा बिजली पासी घबराये नही। बल्कि धैर्य से उसका मुंह तोड जवाब भिजवाया कि महाराजा बिजली पासी न तो किसी राज्य के अधीन रहकर राज्य करते हैं और न ही किसी को अपनी आय का एक अंश भी देने को तैयार हैं। जब आल्हा ऊदल का दूत यह संदेश लेकर पहुंचा उसे सुनकर आल्हा ऊदल झुंझलाकर आग बबूला हो गये और अपनी सेनाएं गांजर में उतार दी। यह खुला मैदान था, यहां पेड़ पौधे नही थे। इस स्थान पर मुकाबला आमने सामने हुआ। यह मैदान इतिहास में गांजर भांगर के नाम से मशहूर है। यह युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक चला। इस युद्ध में सातन कोट के राजा सातन पासी ने भी पूरी भागीदारी की थी। युद्ध बड़ा भयानक था। इसमें अनेक वीर योद्धाओं का नरसंहार हुआ। गांजर भूमि पर तलवार और खून ही खून था इसलिए इसे लौह गांजर भी कहा जाता है। वर्तमान में इस स्थान पर गंजरिया फार्म है। इस घमासान युद्ध में पराक्रमी पासी राजा महाराजा बिजली पासी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह युद्ध सन् 1194 ई. में हुअा था। यह समाचार जब पड़ोसी राज्य देवगढ़ के राजा देवमाती को मिला तो वह अपनी फौजों के साथ आल्हा ऊदल पर भूखे शेर की भांति झपट पड़ा। इस युद्ध की भयंकर गर्जन और ललकार सुनकर आल्हा ऊदल भयभीत होकर कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए। परन्तु आल्हा ऊदल के साले जोगा भोगा राजा सातन ने खदेड़ कर मौत के घाट उतार दिया और पड़ोसी राज्य से सच्ची मित्रता तथा पासी समाज के शौर्य का परिचय दिया। महाराजा बिजली पासी के किले के अलावा उनके अधीन 11 किलों का वर्णन इतिहास में बहुत ही सतही ढंग से किया गया है।

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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

पासी राजा गंगा बख्श रावत Pasi Raja Ganga Bakhs Rawat

बाराबंकी: देवा के ग्राम कासिमगंज में स्थित राजा गंगा बख्श रावत
ऊके विध्वंस किले पर 31 मार्च को विजय दिवस मनाया जाता है पासी समाज के अंतिम शासक राजा गंगा बख्श रावत के ऊपर अंग्रेज सेनापति एल्डर टोन ने 28 फरवरी 1850 को चढ़ाई की। जिसे राजा गंगा बख्श रावत व उनके पुत्र कुंवर रणवीर सिंह रावत ने एल्डर टोन को मार गिराया और अंग्रेजी सेना को परास्त कर दिया। कैप्टन व्यालु व मेजर विल्सन को मार भगाया। उस समय से पासी वर्ग 31 मार्च को राजा के सम्मान में विजय दिवस मनाता चला आ रहा है। पासी समाज अंग्रेजी हुकूमत का शिकार हो गया और तभी से इस जाति के सारे नागरिक अधिकार छीन लिए गए और इस जाति को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया। पासी वर्ग सहित 198 जातियों पर क्रिमिनल एक्ट 1871 में लगा दिया गया। इस पूरी जाति को पुलिस की निगरानी में रखा जाने लगा। यहां तक कि चार साल के बच्चे को अंगूठे का निशान थाने में लिया जाने लगा। और जिलाधिकारी को निर्देश दिया गया कि इस जाति के लोगों को जो सरंक्षण देगा उसे सजा दी जाएगी। इस प्रकार यह जाति विकास से वंचित हो गए आर्थिक रूप से दिव्यांगता झेल रही है। उत्तर प्रदेश में। स्वतंत्रत संग्राम सेनानियों की जब भी चर्चा होगी तब अमर शहीद राजा गंगा बक्स रावत का नाम सबसे पहले लिया जायेगा। जनपद के बाराबंकी के कासीमगंज क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले राजा गंगा बक्स रावत के नाम से अंग्रेजी हुकूमत कांपती थी, जिनके इरादों को राजा गंगा बक्स रावत ने चकनाचूर कर दिया। ब्रिटिश शासकों ने अंग्रेजों की नजर जब भी बाराबंकी की तरफ पड़ी आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले राजा गंगा बक्स रावत ने 1857 में हुयी क्रांति के दौरान अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की जुल्मों शितम के खिलाफ क्षेत्र के शुरमाओं को एकत्र किया। जब उन्होंने राज पाठ सॅभाला था। उस समय अंगे्रज शासक अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे। ऐसे में राजा गंगा बक्स रावत ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, कानपुर के हजारों किसानों, युवाओं व मजदूरों को जोड़ कर क्रांति की ऐसी मशाल जलाई कि अंग्रेजों के छक्के छूट गये। जिसमें कानपुर, झांसी, लखनऊ के राजाओं ने एक साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था। अपनो ने ही लालच में की मुखबरी स्वाधीनता के लिये छेड़े गये संग्राम के लिये रानी लक्ष्मी बाई, बहादुर शाह जफर, नाना साहब, तात्या टोपे के साथ राजा गंगा बक्स रावत भी शामिल हो गये। जिसमें 31 मई 1857 को एक साथ अंग्रेजों की छावनी में हमला करना था। परंतु इसके पहले हमला कर पाते एक विस्फोट होने से अंगे्रज सतर्क हो गये। कानपुर में नाना साहब के अधिकार के बाद अंग्रेज वहां से भाग कर बक्सर आ गये। जहां पर उनका सामना राजा गंगा बक्स रावत से हुआ। बक्सर में अंगे्रज गंगा नदी के किनारे स्थित शिव मंदिर में छिप गये। मौके पर मौजूद ठाकुर यदुनाथ सिंह ने अंगे्रजों को मंदिर से बाहर आने के लिये कहा। परंतु अंग्रेजों ने यदुनाथ सिंह को गोली मार दी। जिससे क्रोधित लोगों ने मंदिर में आग लगा दी। जिससे अंगे्रज जल कर मर गये। परंतु इस हादसे के बाद तीन अंग्रेज बच गये। जो गंगा में कूद कर अपनी जान बचायी। जिन्होंने लखनऊ पहुंचकर पूरी बात अंग्रेज अधिकारियों को बतायी।राजा गंगा बक्स रावत भाँप गये की अंग्रेज किले पर आक्रमण जरूर करेंगे उन्होंने पहले से ही तैयारी कर ली थी जितना भी खजाना था वो सारा खजाना अपने दूसरे किले में ले गए और ये किला खली कर दिया उधर अंग्रेजों ने भारी भरकम फौज के साथ राजा गंगा बक्स रावत के किले पर हमला बोल दिया। राजा गंगा बक्स रावत ने अंग्रेजों का बहादुरी से मुकाबला किया। परंतु अंग्रेजों के गोला बारूद व सामरिक शक्ति के सामने से पीछे हटना पड़ा। राजा गंगा बक्स रावत व उनके जवान छिप.छिपकर अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्व कर अंगे्रजों के दंभ को चकनाचूर करने का काम किया। परंतु अपने बीच के कुछ गद्दारों ने अंग्रेजों के हाथों बिककर गंगा बक्स रावत की मुखबरी कर दिया और उनके ठिकानों की जानकारी अंग्रजों को दे दी। अंग्रेजों को राजा गंगा बक्स रावत के किले में कुछ नही मिला उन्होंने पहले ही सारा खजाना छुपा दिया था लेकिन अंग्रेजो ने राजा गंगा बक्स रावत को काशी में गिरफ्तार कर लिया। फांसी की रस्सी दो बार टूटी थी दिखावटी अदालत व झूठी गवाही के बल पर राजा गंगा बक्स रावत को फांसी की सजा दी गयी। जहां 28 दिसम्बर 1861 को उसी को फांसी पर लटका दिया गया। जिस स्थान पर अंग्रेजों को जलाया गया था।राजा गंगा बक्स रावत माॅ चन्द्रिका देवी के बहुत बड़े भक्त थे। जिस कारण अंगे्रजों द्वारा फांसी देने के दौरान दो बार रस्सी टूट गयी थी। आज गंगा बक्स रावत का नाम जनपद में आदर से लिया जाता है। गंगा बक्श रावत भले ही आज हमारे बीच न हो परंतु कासिम गंज में जन्म दिन मनाया जाता राजा साहब को नमन करने के लिये लोग आते हैं।





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सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

वीरांगना ऊदा देवी पासी 

वीरांगना ऊदा देवी पासी
ऊदा देवी का जन्म लखनऊ के समीप स्थित उजिरावां गांव में पासी परिवार में हुआ था. भारतीय समाज में विभिन्न जातियों के अन्तर्गत पासी जाति भी निम्न व अछूत ही समझी जाती थी. पासी जाति की सामान्य समाज से अलग क्षेत्र में बस्ती होती थी. इन बस्तियों में उच्च जाति के लोग प्रायः नहीं जाया करते थे. पासी समाज वीरता और आत्मस्वाभिमान स्वतः ही आ जाता है. पासी जाति भी इसका अपवाद नहीं थी. यह जाति वीर और लड़ाकू जाति के रूप में भी जानी जाती थी. इसी वातावरण में उदा देवी का पालन-पोषण हुआ. जिसे इतिहास की रचना करनी होती है, उसमें कार्यकलाप औरों से न चाहते हुए भी अलग हो ही जाते हैं. जैसे-जैसे उदा बड़ी होती गई, वैसे-वैसे वह अपने हमउम्रों का नेतृत्व करने लगी. सही बात कहने में तो उदा पलभर की भी देर नहीं करती थी. अपनी टोली की रक्षा के लिए तो वह खुद की भी परवाह नहीं करती थी. खेल-खेल में ही तीर चलाना, बिजली की तेजी से भागना उदा के लिए सामान्य बात थी. सन् 1764 ई. भारतीय इतिहास में निर्णायक वर्ष था. इसी वर्ष बक्सर में अंग्रेजों, बंगाल में नवाब मीर कासिम, अवध में नवाब शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम की संयुक्त सेना को परास्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी थी. इस युद्द के बाद अवध भी अंग्रेजों की परोक्ष सत्ता के अधीन आ गया और अंग्रेजों ने अवध को नचोड़ना शुरू कर दिया जिससे उसकी स्थिति दिन-ब-दिन जर्जर होती गई. सन् 1856 में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया गया और नवाब वाजिद अली शाह को नवाब के पद से हटा कर कलकत्ता भेज दिया गया. सन् 1857 ई. में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया. इस समय अवध की राजधानी लखनऊ थी और वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और उनके अल्पवयस्क पुत्र बिरजिस कादिर ने अवध की सत्ता पर अपना दावा ठोंक दिया. अवध की सेना में एक टुकड़ी पासी सैनिकों की भी थी. इस पासी टुकड़ी में बहादुर युवक मक्का पासी भी था. मक्का पासी का विवाह उदा से हुआ था. जब बेगम हजरत महल ने अपनी महिला टुकड़ी का विस्तार किया तब उदा की जिद और उत्साह देखकर मक्का पासी ने उदा को भी सेना में शामिल होने की इजाजत दे दी. शीघ्र ही उदा अपनी टुकड़ी में नेतृत्वकर्ता के रुप में उभरने लगी. 10 मई 1857 मेरठ के सिपाहियों द्वारा छेड़ा गया संघर्ष शीघ्र ही उत्तर भारत में फैलने लगा एक महीने के भीतर ही लखनऊ ने भी अंग्रजों को चुनौती दे दी. मेरठ, दिल्ली, लखनऊ, कानुपर आदि क्षेत्रों में अंग्रेजों के पैर उखड़ने लगे. बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अवध की सेना भी अंग्रेजों पर भारी पड़ी. किंतु एकता के अभाव व संसाधनों की कमी के कारण लम्बे समय तक अंग्रेजों का मुकाबला करना मुमकिन नहीं हुआ और अंग्रेजों ने लखनऊ पर पुनः नियंत्रण पाने के प्रयास शुरू कर दिए. दस जून 1857 ई. को हेनरी लॉरेंस ने लखनऊ पर पुनः कब्जा करने का प्रयास किया. चिनहट के युद्ध में मक्का पासी को वीरगति की प्राप्ति हुई. यह उदा देवी पर वज्रपात था किंतु उदा देवी ने धैर्य नहीं खोया. वह अपनी टुकड़ी के साथ संघर्ष को आगे बढ़ाती रही. नवंबर आते-आते यह तय हो गया था कि अब ब्रिटिश पुनः लखनऊ पर कब्जा कर ही लेंगे. भारतीय सैनिक अपनी सुरक्षा के लिए लखनऊ के सिकंदराबाग में छुप गए. किंतु इस समय लखनऊ पर कोलिन कैम्पबेल के नेतृत्व में हमला हुआ. उदा देवी बिना लड़े हार मानने को तैयार नहीं हुई. अंग्रेजी सेना ने सिकंदराबाग को चारो ओर से घेर लिया. उदा देवी सैनिक का भेष धारण कर बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर समीप के एक पेड़ पर चढ़ गई और अंग्रेजों पर गोलियां बरसाने लगी. उदा की वीरता देख शेष सैनिक भी अंग्रेजों पर टूट पड़े. काफी समय तक अंग्रेजों को पता ही नहीं चला कि उन पर कहां से गोलियां चल रही हैं. जब उदा देवी की गोलियां ख़त्म हो गयी तब कैम्पबेल की दृष्टि उस पेड़ पर गई जहां काले वस्त्रों में एक मानव आकृति फायरिंग कर रही थी. कैम्पबेल ने उस आकृति को निशाना बनाया. अगले पल ही वह आकृति मृत होकर जमीन पर गिर पड़ी. वह व्यक्ति लाल रंग की कसी हुई जैकेट और गुलाब रंग की कसी हुई पैंट पहने था नीचे गिरते ही एक ही झटके में जैकेट खुल चुकी थी समीप जाने पर कैम्पबेल यह देखकर हैरान रह गया कि यह शरीर वीरगति प्राप्त एक महिला का था.वह महिला पुराने माडल की दो पिस्तौलों से लैस थी अतःउसके पास गोलियां नही बची थी बारलेस को जब मालूम हुआ कि वह पुरुष नहीं महिला है यह जानकर वह जोर से रोने लगा। यह घटना 16 नवंबर सन् 1857 ई. की है संग्राम में क्रांती के दीवानों ने रेजिडेंशी को लखनऊ को घेर लिया था अंग्रेजों को बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था यह देख कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने जनरल कैम्पबेल था। जिसे कानपुर से लखनऊ जाते समय रास्ते में तीन बार अमेठी और बंथरा के पासी वीरों से हारकर वापस लौट जाना पड़ा था। अब सोचना है कि एक ओर अंग्रेजी फौज के साथ बंदूक थी दूसरी ओर लाठियां, कितने पासी जवान तीन बार में मारे गये होंगे। जब कैम्पबेल चौथी बार आगे बढ़ने सफल रहा तो उसने सबसे पहले महाराजा बिजली पासी के किले ही अपनी छावनी बनाई थी। जब तक उदा देवी जीवित रहीं तब तक अंग्रेज सिकंदराबाग पर कब्जा नहीं कर सके थे. उदा देवी के वीरगति प्राप्त करते ही सिकंदराबाग अंग्रेजों के अधीन आ गया. अंग्रेजी विवरणों में उदा देवी को ‘ब्लैक टाइग्रैस’ कहा गया. दुःख व क्षोभ की बात यह है कि भारतीय इतिहास लेखन में उदा देवी के बलिदान को वो महत्व नहीं दिया गया जिसकी वो अधिकारिणी हैं।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

लहरपूर के राजा लहरी पासी - Raja Lahari Pasi

दिल्ली सल्तनत पर मोहम्मद तुगलक की 1325 में हुकूमत हो गई और 1351तक रही। उसने अपनी हूकूमत के दौरान कई हिन्दूयों को मुसलिम धर्म अपनाने पर मजबूर किया। मोहम्मद तुगलक की 20 मार्च 1351 में मृत्यु हो गई उसके बाद फ़िरोज़ साह तुग़लक़ का राज्याभिषक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने अवध प्रान्त को अपने स्वधीन करने के लिए निकल पड़ा सीतापुर खैराबाद लहेरपुर इन सभी क्षेत्रों को जीत लिया आज का जो लहेर पुर है ये पहले किसी अन्य नाम से जाना जाता था पहले किस नाम से जाना जाता था इसका पता नही चल पाया फिरोज साह तुगल ने लहेर पुर को जीत कर इसका नाम तुगलका बाद कर दिया और तुगलो ने लहेर पुर में हिंदुओं के साथ नाजायज जुल्म किये इसी लहेरपुर के कुछ हिस्से पर लहरी पासी का शासन था लहरी पासी ने अपनी सेना को मजबूत और संघटित किया लहरपुर से तुगलो को खदेड़ने की तैयारी बना रहे थे लेकिन फिरोज साह तुगलक की विशाल सेना पहले ही लहेरी पासी के किले पर आक्रमण कर दिया और इस बात की खबर लहरी पासी को चली तो मानो लहरी पासी इसी का इंतजार कर रहे हो लहरी पासी सेना को तैयार किया और तुगल सेना के सामने जा डटे कुछ ही पल में घमासान युद्ध हुआ लहरी पासी ने तुगल सेना में भारी तबाही मचाई और तुगल सेना उद्ध छोड़ कर भाग गयी और संपूर्ण लहेर पुर पर लहरी पासी ने पासी परचम लहरा दिया पुरे लहर पुर में लहरी पासी का शासन हो गया और तुगलका बाद का नाम बदल कर अपने नाम पर लहेर पुर कर दिया इसके बाद लहरी पासी ने तुगलो से खैराबाद को आजाद कराया जिस तरह तुगल हिन्दुओ को निरापराध मौत के घाट उतारते थे उसी तरह तुगलो के लिए लहरी पासी अवध का काल बन गए इतिहासकार कहते है लहरी पासी की तरह पुरे भारत में शासक होते तो मुस्लिम आक्रमण कारी कब का हिंदुस्तान छोड़ कर भाग गए होते लहरी पासी की शासन प्रालि से तुगल हमेसा भयभीत रहते थे लहरी पासी किसी भी तुगलो पर आक्रमण करने से पीछे नही हटते थे अवध प्रान्त में तुगल इतना भयभीत हो गए की लहरी पासी तुग्लो को सपने में भी नजर आने लगे सभी सीतापुर के तुगल मुसलमानो ने हजरत साह अलाउदीन से अपनी रक्षा करने की अपील की तब हजरत साह अलाउदीन फतेह पुर से लखनऊ पहुँचे लखनऊ पहुँच कर हजरत साह अलाउदीन ने हजरत शेख ताहिर गाजी के पास सन्देश भेजा कुछ लोग मानते है कि हजरत साह अलाउदीन ने सपने में ख्वाब दिखाया तब हजरत शेख ताहिर गाजी कन्नौज में था उसके पास सन्देश यह भेजा गया कि कन्नौज को छोड़ कर लहेर पुर की तरफ सेना लेकर प्रस्थान करें और वहाँ मुसलमानो की रक्षा करे उस खूंखार शासक लहरी पासी से आजाद कराये अन्यथा वह सभी मुसलमानो को जीना हराम कर देगा दिन पर दिन लहरी पासी और मजबूत शासक बनता जा रहा है अगर इसे यही नही रोका गया तो या पुरे अवध से मुसलमानो को समाप्त कर देगा ये सन्देश पाकर सेख ताहिर गाजी अपनी विसाल सेना लेकर लहेर पुर की तरफ प्रस्तान कर गया लहरी पासी निडर होकर राज्य की सत्या संभाल रखी थी कुछ दिनों बाद सेख ताहिर गाजी अपनी विसाल सेना लेकर लहेर पुर की सीमा पर पंहुचा उसने बिना कोई चेतावनी य सन्देश देकर लहरी पासी के राज्य पर आक्रमण कर दिया लहरी पासी ने आनन फानन अपनी सेना एकत्रित की और युद्ध के लिए सेख ताहिर गाजी के सामने जा डटे लहरी पासी की कम सेना देख कर उसने लहरी पासी का मजाक उड़ाया लहरी पासी आग बबूला हो गये दोनों तरफ की सेना आमने सामने जा डटी और घमसान युद्ध हुआ लहरी पासी की सेना ने तबाही मचा दी ये कारनामा देखा सेख ताहिर गाजी भी भय भीत हो गया उसकी सेना भागने लगी लेकिन साम के होते युद्ध बन्द करना पड़ा और इस तरह ताहिर गाजी की सेना बच गयी और अगले दिन की युद्ध करने की तैयारी करना सुरू कर दिया तब तक रात में ही हजरत साह अलाउदीन सेना लेकर पहुँच गया और हजरत साह अलाउदीन को सेना लेकर देख ताहिर गाजी की सेना में खुसी की लहर दौड़ी अगले दिन युद्ध हुआ मानो लहरी पासी की सेना सिरपर कफन बांध कर लड़ रही हो लेकिन लहरी पासी की कम सेना होने के कारण अलग अलग घेर लि गयी और महाराज लहरी पासी अपनी सेना से अलग हो गए उन्हें मुस्लिम सेना ने चारों तरफ से घेर लिया था और लोग कहते है कि लहरी पासी को कैद कर लिया गया था कुछ लोग कहते है कि वह वीरगती को प्राप्त हुए थे और इस तरह लहेर पुर से फिर से पासी शासन समाप्त हो गया माजसह कलन्दर की प्राचीन नगरी लहेर पुर की किताब में महाराजा लहरी पासी को अत्याचारी शासक बताया गया है
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राजा राम पाल पासी का इतिहास अवध के पासियो का इतिहास

 साथियों चक्रवाती सम्राट महाराजा सातन पासी को तो आप जानते होंगे  क्या आप जानते हो उनका नन्हिहाल कहां का था तो जानते है उनके नन्हिहल के बारे ...