महाराजा माहे पासी का इतिहास """""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
चौदहवीं शताब्दी में, रायबरेली जनपद के ऊंचाहार #नगर_पालिका से थोड़ी दूर पर #गोड़वा रोहनियाँ नामक स्थान पर लगभग सन 1350 ईo में एक छोटा सा गणराज्य था जिसके शासक थे माहे पासी। माहे पासी एक पराक्रमी योद्धा थे। उनमें अपार संगठन शक्ति थी। उन्होंने अपने बल पर एक बलशाली सेना इकट्ठा की और गोड़वा रोहनियाँ में अपना स्वतंत्र राज्य खड़ा किया।
और अपने राज्य का निरन्तर विस्तार किया। लेकिन सन 1350 का वो दौर था जब विदेशी मुस्लिम आक्रमण निरन्तर भारत पर होता रहता था। और आए दिन मुस्लिम आक्रमण कारी भारत के हिन्दू राजाओं को हरा कर उनका राज्य अपने कब्जे में कर लेते थे यह इस लिए संभव हो पा रहा था क्युकी भारत के हिन्दू शासक एक नहीं थे वो आपस में लड़ कर अपनी ताकत को नष्ट कर देते थे इसी बात का फायदा मुस्लिम आक्रमणकारी उठाते थे । महाराजा माहे पासी ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए तरह तरह........ की योजनाएं बनाई उन योजनाओं से काफी हद तक उनका राज्य मुस्लिम आक्रमणकारियों से सुरक्षित भी रहा पूरे राज्य के सीमाओं के चारो तरफ सुरक्षा बढ़ा दिया कहा जाता है कि महाराजा माहे पासी ने राज्य की सुरक्षा के लिए एक ये भी घोसडा करा दिया कि हर घर से नौजवान युवा अपने राज्य की सीमाओं पर पहरा देगा जिससे मुस्लिम शासक गोड़वा राज्य पर आक्रमण करना तो दूर उधर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं करते थे
इस घोसडा से कई लोग सहमत नहीं थे सबसे जायदा दिक्कत एक मुराइन को हुई उस मुराइन ने पड़ोस के नेवारी राज्य के राजपूत राजा के पास शिकायत तक लेकर पहुंच गई और नेवारी के राजपूत राजा से बोली नेवारी नरेश के रहते गोड़वा की प्रजा दुखी है उस मुराइन ने बोला महाराज माहे पासी ने गोड़वा राज्य के सीमाओं पर सुरक्षा के नाम पर सभी के घर से युआओ को सीमाओं पर खड़ा कर दिया है एक नौजवान बच्चा मां बाप से दूर सीमाओं पर खड़ा है एक पिता अपने बीवी बच्चों से दूर सीमाओं पर खड़ा है हमारी आप से गुजारिश है कि आप माहे पासी को हरा कर गोड़वा पर आधिपत्य जमा ले हम आपकी जिंदगी भर चाकरी करेंगे
नेवारी के राजपूत राजा बोले मुराइन महेपासी को हराना इतना आसान नहीं है उनका भांजा प्रसुराम (परसराम) बहुत ही बल साली है उसके अकेले लड़ने से ही हम उनसे जीत नहीं सकते इससे गुस्सा त्याग दो ये भ्रम निकाल दो
मुराइन ने एक बार फिर नेवारी के राजपूत राजा को ललकारते हुए उनके बहादुरी और क्षत्रित्व पर प्रसन्न चिन्ह लगा दिया इससे क्रोधित होकर नेवारी के राजपूत राजा माहे पासी से युद्ध के लिए तैयार हो गए अगले ही दिन गोड़वा और नेवारी राज्य में भयंकर युद्ध हुआ महेपासी के भांजे परसराम पासी और नेवारी के राजपूत राजा के बीच द्वंद युद्ध हुआ जिसमें परसराम पासी ने नेवारी के राजा को मार डाला और नेवारी के एक बड़े भू भाग पर माहे पासी का कब्जा हो गया और उस मुराइन को कैद करके कारागार में डाल दिया माहेपासी और उनके भांजे परसराम पासी की वीरता के चर्चे हर राज्य में होने लगे इसी कारण लगभग 24 साल तक कोई भी मुस्लिम आक्रमणकारी गोड़वा राज्य की तरफ आंख उठकर नहीं देखता था एक बार वह समय भी आया जब
कुछ स्थानीय गद्दारों की मुखविरी के कारण दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक की सेनाओं से राजा माहे पासी का जबरदस्त मुकाबला हुआ जिसमें राजा माहे पासी और परसराम पासी बहुत बहादुरी से लडे और उन मुस्लिम आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दिया इसी युद्ध में महाराजा माहे पासी वीरगति को प्राप्त हो गये। यह युद्ध 1374 ई. में हुआ था। राजा माहे पासी का राज्य 1350 ई. से लेकर 1374 ई. तक रहा। उनके किले के भग्नावशेष आज भी गोड़वा रोहनियाँ में बिखरे पड़े हैं। संरक्षण के अभाव में पासियों की यह ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने की कगार पर है। उनके किले पर आज भी पासी समाज एकत्रित होता है। और उनके दर्शन करता है आज उनके किले पर उनकी एक मूर्ति का भी अनावरण किया गया है
(पुस्तक रचना की जमीन में )
1 (माहे परसू की कथा )
और
2 (पासी मुराइंन का झगड़ा) के नाम से अंकित है
यह अवधी भाषा में ग्रन्थावली है
लेख (भारत पासी भारशिव)
जय महाराजा माहे पासी
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