सोमवार, 16 मई 2022

महाराजा लाखन पासी


 आखिर 'नवाबों का शहर'  का नाम लखनऊ कैसे पड़ा ? जानिए लखनऊ नामकरण के पीछे की कहानी 

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लखनऊ बसने के किताबी उल्लेख -

                                                   पहला किताबी उल्लेख अकबर के शासन काल में बिजनौर के शेखों का लखनऊ आकर बसने से शुरु होती है, उससे पहले यहां पासी समुदायों की घनी आबादी के साथ साथ ब्राह्मण और कायस्थों की टीले के इर्द गिर्द बसाहट दिखाईं देती हैं , इसके तह तक जाने में हमे 1896 के आसपास लिखी किताब " गुंजिश्ता लखनऊ " जिसे जाने माने लेखक साहित्यकार श्री अबुल हलीम शर्रर ने लिखा था जो नवाब वाजिद अली शाह के दरबारी भी थे और उनका परिवार उनके करीबी भी, उनसे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है, जिनकी किताब से उस समय के लखनऊ का खूबसूरत चित्रण किया गया है 

                              श्री अबुल हलीम शर्रर जी ने अपने किताब में लखनऊ के बारे में कुछ इस तरह बयां किया है की :- 

      " कहा जाता है कि महाराजा युधिष्ठिर के पोते राजा जन्मेजय ने यह इलाका तपस्वियों और ऋषियों-मुनियों को जागीर में दे दिया था जिन्होंने यहां चप्पे-चप्पे पर अपने आश्रम बनाये और भगवान के ध्यान में लीन हो गये । एक मुद्दत के बाद उनको कमज़ोर देखकर दो नयी जातियों ने हिमालय की तराई से आकर इस प्रदेश पर अधिकार कर लिया। ये जातियां आपस में मिलती-जुलती और एक ही नस्ल की दो शाखाएं मालूम होती थीं: एक 'भर' और दूसरी 'पांसी'  

इन्हीं लोगों से सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी का 1030 ई० में मुक़ाबिला हुआ और शायद उन्हीं पर बख्तियार खिलजी ने 1202 ई० में चढ़ाई की थी । लिहाजा इस प्रदेश में जो मुसलमान परिवार पहले-पहल आकर आबाद हुए वे इन्हीं दोनों हमलावरों खासकर सैयद सालार मसूद ग़ाजी के साथ आनेवालों में से थे 


भर और पांसियों के अलावा ब्राह्मण और कायस्थ भी यहां पहले से मौजूद थे "


भर अवध में पासी जाति की उपजाति और भर का दूसरा नाम पासी है ऊपयुक्त लेख से समझ गए होंगे की पहले इस टीले पर आबादी पासी जाति की रही है मुसलमानो का आगमन बाद में हुआ दूसरी बात ये कि लखनऊ के आसपास कई इलाके जो पासी राजा के नाम से पड़े ,जैसे कन्समंडी राजापासी राजा कंस के नाम से, मलिहाबाद राजा मलीहा पासी , बिजनौर राजा बिजली पासी के माता के नाम से , लखनऊ हाई कोर्ट के बगल बिजई पुर गांव राजा बिजई पासी के नाम से , हैबत मऊ हैबत पासी के नाम से आदि सैकड़ों नाम जो पासी राजा/मुखिया के नाम से संबंधित और जाने जाते है तो लखनऊ क्यों नही.. जी बिलकुल मुसलमानो के आगमन से पहले यहां पासी जाति का शासन रहा है तो पासी नाम ही पहले जहन में आते है और कोई जाति या समुदाय इस जगह शक्तिशाली नही रहे है तो उनके बारे सोचना व्यर्थ जैसा है


ब्रिटिश विद्वान कहते है  की कोई भी बस्ती जिसके नाम के आगे " पुर " या "बाद" या " मऊ " जुड़ा होता हैं वह गांव या बस्ती पासी जाति से जुड़े होते है आमतौर पर पासियो के गांव के नाम मऊ पुर या बाद है वहां कभी पासी जाति का प्रभुत्व रहा है 


इसी संबंध में लखनऊ के प्रतिष्ठित इतिहासकार  स्व श्री योगेश प्रवीन जी का मत है " की लखनऊ का नामकरण महाराजा लाखन पासी के नाम से पड़ा उस जमाने में यह लखनपुर या लखनमऊ हुआ करता था धीरे धीरे लखनमऊ और लखन मऊ से लखनऊ हो गया ऐसा प्रतीत होता है "


यहां भी "मऊ"शब्द बेहद प्रबल दिखाईं देता है और मऊ शब्द पासी जाति से जुड़ा होना इस तर्क को मजबूत बल देता है लखनऊ में खुद की एक निजी सर्वे के तहत मऊ संबंधित जीतने पुराने गांव है वहां पासी जाति की बहुलता है जिससे इस मत में कोई संदेह नहीं होता ।


सेंसस ऑफ इंडिया 1971  में साफ साफ लिखा है।          " king lakhan Pasi founded Lucknow " लखनऊ को लाखन पासी ने बसाया है 


लाखन टीले से शाह पीर मुहम्मद का टीला  परिवर्तित


1896 पेज न.13 पर श्री शरर जी लिखते है :-

                                     " पुराने जमाने के आनेवालों में शाह मीना का परिवार भी है जिनका मज़ार आजतक सर्वसाधारण का शरणस्थल है। और शायद इसी समय के आनेवालों में शाह पीर मुहम्मद भी थे जिन्होंने खास लक्ष्मण टीले पर निवास किया और वहीं उसका देहांत भी हुआ। उन्हीं के वहां रहने के कारण वह पुराना टेकरा लक्ष्मण टीले से 'शाह पीर मुहम्मद का टीला हो गया और समय बीतने के साथ वह गहरी गुफा भी पट गयी । उस पर बाद के ज़माने में शहनशाह श्रौरंगजेब ने जो खुद वहां आया था एक बढ़िया, मजबूत, खूबसूरत और शानदार मस्जिद बनाकर खड़ी कर दी । "


इतिहासकार श्री योगेश प्रवीन और अमृत लाल नागर भी उस टीले पर नागो का प्राचीन शिवमंदिर और एक कुंआ जो गुफा के समान है जिसकी थाह कोई ले नही सकता है  ऐसी चर्चा की है 


श्री शरर जी अपने विवरण में  इसबात की खुली चर्चा करते है की- टीले पर एक गहरा गुफा या कुंआ है 


          " इस टीले में एक बहुत ही गहरी गुफा या कुआं था जिसकी किसी को थाह न मिलती थी और लोगों में मशहूर था कि वह शेषनाग तक चला गया है। इस विचार से लोगों में आस्था के भाव जागे और हिंदू लोग भक्ति-भाव से उसमें फूल-पानी डालने लगे " ।


अब अकबर से पहले प्राचीन महाराजा लाखन पासी की कहानी = महाराजा लाखन पासी ( 10-11 )

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इतिहासकार श्री योगेश प्रवीन जी कहते है " की सैयद सालार गाज़ी से  कंसमंडी की बिकट लड़ाई के बाद अगली लड़ाई लखना कोट के नीचे लड़नी पड़ी वह बड़ा भीषण युद्ध था "


लाखन पासी किले का इतिहास जानकारों की माने और इतिहास पर नजर डालें तो कहीं न कहीं सामने आया प्राचीन समय का निर्माण किसी किले के जमीन के नीचे दबे होने के संकेत दे रहा है ।  प्राचीन इतिहस में महाराजा लाखन पासी के इतिहास के बारे में दी गई जानकारियों के मुताबिक लखनऊ गजेटियर ( ब्रिटिश काल ) में भी लिखा है कि जिले के प्राचीन स्थानों की संख्या बहुत थोड़ी है । अधिकतर टीले या डिह जो विद्यमान है. पासियों के बताए जाते है।यह सब इस बात के स्पष्ट प्रमाण है कि लखनऊ और उसके आस पास के समस्त जिलो पर पासियों का राज था  और लखनऊ को राजा लाखन पासी ने बसाया था महाराजा लाखन पासी के समय लखनऊ एक छोटा नगर था । आज जहा लखनऊ मेडिकल कालेज एवं टीले वाली मस्जिद है वह स्थान महाराजा लाखन पासी का किला और उससे संबद्ध में  भवन हुआ करते थे । कालान्तर में उन पर राजपूतों और मुसलमानों के हमले होते रहे और संरक्षण के अभाव में ये ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होती गई । इतिहासकार योगेश प्रवीन ने अपनी पुस्तक दास्ताने अवध में राजा लाखन पासी का उल्लेख किया है । कई विद्वानों ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि लखनऊ की लाखन पासी ने बसाया था 


राजा लाखन पासी के साक्ष्य✓

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देखिए जब से इतिहास की जानकारी होती है तभी हम कुछ कह सकते हैं बिना साक्ष्यों और  बिना प्रमाण के कोई बात करना उचित नहीं होता  और इसलिए किसी भी स्टोरी के पीछे हम तहकीकात करते हैं तब किसी न किसी साक्ष्यों पर या किसी ने किसी किदवंती और पौराणिकता को छूते हैं  और साथ में उससे जुड़े हुए ऐतिहासिक तथ्यों का आकलन भी करते हैं जिससे हम ऐतिहासिक तथ्यों पर विश्वास करते हैं और यह सही भी है लेकिन जब साथ में कुछ पौराणिक घटनाओं का जिक्र होता है तो उसको भी ध्यान में रखा जाता है और इसी प्रकार से जब लखनऊ शहर की बात करते हैं इस शहर का नाम लखनऊ कब पड़ा ?  कैसे पड़ा ?  इसके पीछे क्या साक्ष्य हैं?  तो हम पाते हैं लखनऊ शहर के बारे में प प्रायः दो मत का प्रचार है - 


1. सामान्य विश्वास के अनुसार इस शहर का नाम यहां के राजा लाखन पासी ( लखना) के नाम से पड़ा जो किसी समय यहां बड़े शक्तिशाली थे  ऐसा इसलिए कहा जाता है कि आसपास के संपूर्ण क्षेत्र पर पासियों का राज रहा है जिनके किलो के अवशेष आज भी विद्यमान हैं.


2. साथ ही  विश्वास के अनुसार यह कहा जाता है कि पौराणिकता के अनुसार राम के भाई लक्ष्मण के नाम से इस शहर का नाम लक्ष्मणपुर से लखनपुर पड़ा और लखनपुर से नवाबों के समय लखनौ और फिर अंग्रेजों के समय लखनऊ हो गया ।


जब हम पौराणिकता कि साथ जाते हैं तो प्राचीन समय से आज तक राम या राम से जुड़ी कोई भी चीज ऐतिहासिक रूप से उपलब्ध नहीं होती । जिस पर विश्वास करना कठिन होता है


      वहीं दूसरी तरफ जब हम राजा लाखन पासी की बात करते हैं तब उनसे जुड़े उनके किलो और उनके द्वारा निर्मित भवनों  अवशेष लखनऊ में देखने को मिल जाते हैं जिन का अध्ययन करने से पता चलता है यह लगभग हज़ार साल पहले 

का है -

अब जब हजार साल पुराने साक्ष्यों का अध्ययन करते हैं तब यहां इस  क्षेत्र पर लखनऊ सहित आसपास के 14 जिलों में पासियों का एकछत्र राज रहा जिसका समय काल 9. वी सदी 12 वी सदी. तक देखा गया बाद में  निरंतर  हुवे मुस्लिम और राजपूतों के आक्रमण से उनके राज्य छिन्न-भिन्न हो गए ।


मुस्लिम आक्रमण 

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भारत में मुस्लिमो का आक्रमण सातवीं सदी के आते-आते बड़ी तेजी से होते नज़र आते है उसी क्रम में जब हम 10 वीं सदी की बात करते हैं तभी इस क्षेत्र पर सैयद सालार मसूद गाजी का आक्रमण होता है जिसके पास में लाखों की तादाद में सैन्य बल और सेना होती है पंजाब दिल्ली कन्नौज को जीतता हुआ क्षेत्र अवध पर पहुंचा , कन्नौज के राजाओं ने मुसलमानों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। 

                                और वह इस क्षेत्र को जीतने के लिए आगे बढ़ा  और लखनऊ की धरती पर कदम रखते ही उसकी बिकट लड़ाई कसमंडी ( काकोरी ) के  शक्तिशाली रजपासी राजा कंस से लड़नी पड़ी । प्रथम युद्ध में गाजी की सेनाओं को हार का मुंह देखना पड़ा तब यह क्षेत्र पासियों से भरा हुआ था मुसलमानों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि यहां के पासी  इस हद तक युद्ध करेंगे कि उसकी मौत का कारण  बन जाएंगे अपने जीत के नशे में चूर सैयद सालार मसूद गाजी बहुत जल्द हार का स्वाद चखना पड़ा ,और सारी सेना सहित वह बहराइच में पासी  राजा सुहेल देव के हाथों मारा गया ।


#लखनऊ में पासियो का  संघर्ष  

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इतिहासकारों का मानना है कि #कंसमंडी के विकट लड़ाई के बाद मसूद गाजी को अगली बिकट  लड़ाई लाखन कोट पर लड़नी पड़ी ।

               क्योंकि कंसमंडी के दौरान राजपासी  कंस वीरगति हुवे, लेकिन उससे पहले  सैयद सलार गाजी के दो भतीजे सैयद हातिम और खतीम को मौत के घाट उतार दिए थे  जिसकी मजारे आज भी कसमंडी में देखने को मिल जाती हैं

और लखनऊ अकबरी गेट के सामने उस समय मैदान था जहां पर भीषण युद्ध हुआ था और उसके बाद लाखन कोट पर यह युद्ध इतना भयंकर हुआ । अपने भतीजे के मौत से बौखलाए सैयद सालार मसूद गाजी ने अपनी लाखों की सेना इस कोट को जीतने के लिए लगा दी  आज भी उस युद्ध की गवाही देता पास में गंजशहीदा आज भी मौजूद है जहां मुसलमानों की लाशे है आज भी दफन है, और इतिहासकारों का मानना है कि लखनऊ की बिकट लड़ाई में ही राजा लाखन पासी वीरगति हुए  । 

 और फिर मसूद गाजी ने यहां से गोमती पार करके बाराबंकी में सतरिख में अपना पड़ाव डाला था और फिर युद्ध की सारी नीतियां वहीं से बनाई लेकिन लखनऊ के बिकट  युद्धों से मसूद गाजी इतना घायल हुआ कि उसकी सेनाओं को उबरने में बड़ा समय लगा,  फिर आगे बहराइच में पासी राजा सुहेलदेव के हाथो मारा गया ।   


तो यह कहानी है महाराजा लाखन पासी की और उनके द्वारा किए गए युद्धों की जो आज भी किस्सों कहानियों में लखनऊ में सुनने को मिल जाती है  ।


अब बात करते है ऐतिहासिक साक्ष्यों की 

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ऐसी बहुत सारी किताबें हैं लेकिन एक ऐसी किताब है जिसमें बकायदा राजा लाखन पासी के बारे में बताया गया है जिसके नीचे में पन्ने को अपलोड कर रहा हूं जिसे आप देख लीजिएगा


जी हां मैं बात कर रहा हूं  ( The beautiful india  uttar Pradesh -1978 ) जो  Central archaeological library में मिल जाएगी जिस पर उसकी मोहर भी है  जिसके पेज नंबर 175 पर जाने से लखनऊ के बारे में आपको जानकारी दी गई है वह निम्नवत है - 


( Lucknow ) -   लखनऊ: लखनऊ (लखनऊ), बगीचों का शहर, #गोमती के किनारे स्थित है।  लखनऊ नाम की उत्पत्ति पर विवाद है।  " मुस्लिम इतिहासकारों का मत है कि बिजनौर शेख करीबन 1526 ई. में यहां आकर बस गए थे और उस समय के इंजीनियर लखना पासी की देखरेख में अपने लिए एक किला (किला) बनवाया था।  प्रारंभ में किला लखना के रूप में नामित यह धीरे-धीरे लखनऊ में बदल गया।  दूसरी ओर,  हिंदू साहित्य एक अलग संस्करण देता है।  ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम के सौतेले भाई, लक्ष्मण, जिन्हें लखन के नाम से जाना जाता है, का जन्म यहीं हुआ था और #लखनपुर शहर की स्थापना यहां पर हुई थी।  यह बाद वाले मत से ऐसा  प्रतीत होता है क्योंकि इस समय तक इंजीनियर के नाम पर किसी शहर का नामकरण नहीं किया गया है, हालांकि शहर और कस्बों का नाम राजकुमारों और शासकों के नाम पर जरूर रखा गया है।"


नोट -  विद्वानो ने इंजीनियर की बात को खारिज कर राजकुमारो एवं शाशको के नाम से हो सकता है स्वीकारा गया है  


मुस्लिम इतिहासकार यह अच्छी तरीके से जानते थे कि लाखन पासी नाम का कोई शासक था । 

                      दूसरी बात यह कि पासी शासकों ने कई जगह सुंदर-सुंदर निर्माण करवाएं जिनका उदाहरण आज भी आप देख सकते है और ब्रिटिश गजेटियर से प्रमाणित भी है किलो के संदर्भ में ,जैसे महाराजा बिजली पासी के 12 किले लखनऊ में देखने को मिल जाते हैं जिनके , उचित देखे रेख ना होने से खंडहरों के रूप में बचे हैं  


इंजीनियर कहने का तात्पर्य - उनका नए नए भवनों का निर्माण की  चाहत रखने वाला ( राजा)  से हो सकता है  जो ऐतिहासिक रूप से सत्य प्रतीत होता है क्योंकि यहां पर पासियो का राज था और उनके ढेरों प्राचीन किले एवं डीह देखने को मिल जाते हैं   


तो जो सदियों सदियों से लखनऊ के बारे में जो मत है वह भी आपके समाने रखा है  दोनों मत आपके सामने बताया है


1. एक तो राम के भाई लक्ष्मण के नाम से 

2.  दूसरा महाराजा  लाखन पासी के नाम से , जिनके बहुत से ऐतिहासिक प्रमाण हैं जैसे  ;- 


(i ) संस्कृति विश्वकोष vol.1 by सूर्यप्रसाद दीक्षित

(ii) प्रख्यात इतिहासकार श्री योगेश प्रवीन

(iii) प्रख्यात इतिहासकार अमृतलाल नागर जी

(i v) सेंसस ऑफ इंडिया सीरीज 1971

(V) The beautiful india uttar Pradesh ,page no. 175 


आदि बहुत से साक्ष्य हैं महाराजा लाखन पासी के बारे में

🙏🏻🙏🏻

( The Pasi Landlords )

       कुंवर प्रताप रावत


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