सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

पासी सम्राट महाराजा लाखन पासी - Maharaja Lakhan Pasi

पासी सम्राट महाराजा लाखन पासी

वीर शिरोमणि लाखन पासी ने #लखनऊ की स्थापना की थी आज जिस टिल्ले पर किंग जार्ज मेडीकल कॉलेज की भव्य ईमारत खड़ी हुई हैं उसी टिल्ले पर राजा लाखन पासी का किला हुआ करता था #लाखन पासी का राज्य 10-11 वि सताब्दी में था उनका किला डेढ़ किलो मीटर लम्बा और डेढ़ किलो मीटर चौड़ा था और धरा तल से 20 मीटर ऊँचे पर था  लाखन पासी के पत्नी का नाम लखनावती था संभवता इस लिए  लखनऊ का नाम लखनावती चलता था  राजा #लाखन पासी ने लखनावती वाटिका का निर्माण कराया था जिसके पूर्वी किनारे में नाग मंदिर भी बनवा था लाखन पासी नागों के उपासक थे किले के उत्तरी भाग में लाखन कुंड था उसमें साफ पानी भरा रहता था इस पानी का उपयोग राज घरानों के लोग करते थे इतिहास के पन्नो मे अंकित है कि जब सैयद सलार मसूद गाजी लखनऊ पर हमला किया था तो उसके प्रमुख सेना पति सयैद हातिम सैयद खातिम ने महाराजा लाखन पासी के किले गढ़ी जिन्दौर के सिमा पर पड़ाव डाला था वही से किले की सारी जानकारी हासिल किया और तय किया कि राजा लाखन पासी और कसमंडी के राजा कंस पर एक साथ हमला किया जाये ताकि ये एक दूसरे की मदत न कर पाए लाखन पासी कसमंडी के राजा कंस की बहुत पुरानी दोस्ती थी उस समय गाजी मियां और पासीयों की लड़ाई राज पाट की थी परिणाम स्वरूप सैयद सलार मसूद गाजी  लाखन पासी और कसमंडी के राजा कंस पर सांम को ठीक होली के दिन हमला किया जब सारी सेना और लाखन पासी आराम कर रहे थे किले पर अचानक हमला देख कर लाखन पासी घोड़े पर सवार हुए सेना लेके युद्ध भूमि में जा डटे यह युद्ध बहुत भयंकर था राजा लाखन की सेना गाजी के सेना पर भूखे शेर की भांति टूट पड़े मसूद के सेना में सभी घुड़ सवार थे महाराजा लाखन को चारों तरफ से घेर लिया तब भी लाखन पासी बहादुरी से लड़ते रहे उन पर तलवारो के हमले हो रहे थे गाजी के एक सैनिक ने धोखे से पीछे से तलवार  गर्दन पर मार दिया और उनका सर काट कर जमीन पर गिर गया भीषण युद्ध के बाद उस जगह का नाम सरकटा नाला पड़ा चौपटिया नमक स्थान पर स्थित अकबरी दरवाजे के पास ही युद्ध हुआ था जिस समय राजा का सिर धड़ से अलग हुआ था उस समय सिर कटने के बाद भी राजा का धड़ दोनों हाथ में तलवार लेके युद्ध कर रहा था सिर कटे होने के बावजूद कई सैनिको को मौत के घाट उतार दिया यह कारनामा गाजी के सैनिक देख कर घबड़ा गये ऐसे साहसी वीर पुरुष थे महाराजा लाखन पासी


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रविवार, 6 अक्तूबर 2019

Rajpasi Raja Kans - राजपासी राजा कंस 

| history of rajpasi raja kans      -       राजपासी राजा कंस
     समयकाल            -    ( 980 - 1031)  ई. राजगद्दी               - कंसमण्डी  ( लखनऊ ) क्षेत्र                     -   अवध ( उत्तरप्रदेश ) प्रथम युद्ध            - उन्नाव- संडीला सीमा क्षेत्र दृतिया बर्बर युद्ध    - कंसमण्डी की लड़ाई तृतीया युद्ध         -  ( कैथोलि-खातौली ) निकट कंसमण्डी वीरगति              -  1031 ई.  ( कैथोलि - खतौली )      राज्य-सीमायें       -   उन्नाव , मलिहाबाद , संडीला ककोरी, हरदोई ,सीतापुर , पश्चिमी लखनऊ आदि । का 11 सदी के शुरुआती समय में महाप्रतापी राजा कंस जो जाती के राजपासी थे जिनको राज्य अपने पुरखो से  मिली थी उनका शासन लखनऊ के  काकोरी (मलिहाबाद ) के निकट कंवलाहार कंसमण्डी ( कंसमण्डप) में था राजपासी राजा कंस  का समयकाल 980 ईस्वी से 1031 इस्वी तक माना गया है जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों के खतरे मंडरा रहे थे और जब सैयद सालार मसूद गाजी का जेहाद ( धर्मयुद्ध ) छेड़ा था और पूरे भारत को फतेह करना चाहता था उसकी लालसा पूरे भारत को जीतकर इस्लाम फैलाना था जब पंजाब को जीतते हुवे दिल्ली जीतकर कन्नौज पर हमला किया कन्नौज का राजपूत राजा बचने के लिए इस्लाम कबूल कर लिया ,जेहादियो की सेना में भी शामिल हो गया ,आगे उसे रोकने टोकने वाला कोई ना मिला लेकिन जब गंगा पार कर अवध में दाखिल हुआ तो उसकी बर्बरता चरम पे थी जिधर से  भी गुजरता  हिदुओ का बचना मुश्किल था जब तक कि वह इस्लाम कबूल ना कर ले ,उसके आतंक के चर्चे हर जगह फैल गए  लोगों में त्राहि त्राहि मच गई जहाँ सैयद मसूद गाजी की सवालाख  जेहादियों सेना थी । वही अवध में रजपासियो  छोटे छोटे राजाओ के छोटे गडराज्य थे जो आपस मे मिलकर रहते थे और पश्चिम अवध  में राजपसियो का  शासन था जो अपने स्वतंत्र प्रवर्ति के लिए जाने जाते थे जो बेहद स्वाभिमानी ,और अड़ियल रुख वाले होते  थे जो बात बात पर म्यान से तलवार निकाल लिया करते थे उन वीर रजपासियो  का शासन पूरे  पश्चिम अवध में उस समय था सैयद सालार मसूद गाजी की जो विजय अभी तक हुवी थी उनमे से लखनऊ की  लड़ाई उसने कभी ख्वाब में भी नही सोचा था ,ना ही उम्मीद की थी मसूद गाजी के लखनऊ में कदम रखते ही पहली लड़ाई कंसमण्डी के राजपासी राजा कंस से लड़नी पड़ी इस जबदरस्त मुकाबले में उसके दो सेनापति सैयद हातिम और  ख़ातिम  मारे गए  मसूद गाजी जो सवा लाख से भी ज्यादा थे और राजपासी कुछ चंद हज़ार फिर भी अपने ताकत का लोहा मनवा लिया राजा कंस से पहली लड़ाई उन्नाव और संडीला के किलो पर हुवी फिर उसके बाद जबरदस्त लड़ाई काकोरी मलिहाबाद पे हुवी इस भयानक युद्ध मे राजपासी राजा कंस के  हाथों से ककोरी निकल गया वँहा मुस्लिमों का कब्जा हो गया । सैयद गाजी ने  वँहा अपनी सैनिक अड्डा  बना लिया सैयद  हातिम  और  खातिम  उसके बाद उसके दो सेनापति  सैयद  हातिम  और खातिम  ने राजा कंस की गद्दी ( सिंहासन ) कंसमण्डी पर हमला हुआ ये जबरदस्त लड़ाई हुवी यहाँ , तुर्को की हार निश्चित हो गयी लेकिन तब तक गाजी की हज़ारो घुड़सवार वँहा आ डटे दुबारा मदद मिलने से गाजी का पलड़ा भारी पड़ने लगा ,लड़ाई लड़ते लड़ते रात हो गयी गाजी की सेना भारी पड़ने लगि तब जाकर राजा कंस ने सारी सेना किले के  अंदर बुला  ली और गुप्त सुरंगों से अपनी बाहरी मदद का इंतजार करने लगे क्योंकि पड़ोसी राजा भी उस समय मुश्किल में थे क्योंकि गाजी ने सारे आसपास के राजाओ पर एक  साथ हमला किया ताकि कोई राजा एक दूसरे की मद्दद ना कर सके इसमे कोई दो राय नही है कि गाजी एक कुशल युद्व नीति का धनी था । जब गाजी की सेना कंसमण्डी के किले को चारो तरफ  घेर ली और गोल गोल चक्कर काटने लगी थी उन लोगो ने किले के दरवाजे को तोड़ने और किलो पे चढ़ने की बहुत कोशिश की लेकिन किले पे मजबूत धनुषधारी राजपासी ने अपना कमाल दिखया उस समय राजपासियो के बनाये तीर पूरे भारत मे जाती थी और राजपासियो कि तीरंदाजी दुनिया मे मशहूर थी वह युद्ध बड़ा भयानक था वह रात में लड़ा गया युद्ध था  उसी युद्ध मे राजपासी राजा कंस ने तेल को गरम करवा कर बड़ी तरकीब से सैयद हातिम ख़ातिम पर डलवा दिया ,जिससे दोनो वंही तड़प तड़प के मर गया सैयद हातिम और ख़ातिम के मरते ही मुसलमानो में भगदड़  मच गई और भाग खड़े हुवे वहाँ राजपासी राजा कंस की रात में जीत दर्ज हुवी यह युद्ध कोई एक दो दिन का नही था फिर आगे चलकर राजा कंस का और युद्ध हुवे जहाँ कंसमण्डी से कुछ दूरी पर खातौली  ( कैथोलि) पर राजपासी राजा कंस वीरगति हुवे ये युद्ध बड़ा ही भयानक और राजपसियो क बलिदान की गँवाह है जिहोने इस देश धर्म माटी के खातिर अपने प्राणो की आहूति दे दी जिनका नाम लेने वाला आज कोई नही है उन वीर राजपासियो के बलिदान के बारे में एक छोटी सी पेशकश आपतक लाया हूँ और उस युद्ध मे मारे गए जेहादी आज भी मलिहाबाद में गंजशहीदा  में आज भी दफन है और इस युद्ध के बाद जब गाजी आगे बढ़ा तो 2 साल बाद  राजा सुहेल देव पासी ने सैयद सालार गाजी को मार गिराया और उसके जेहाद पर लगाम लगा दी ये है कहानी राजपासी राजा कंस की है जिन्होंने गाजी के  मारे जाने  से  2,3 साल पहले लखनऊ के संघर्ष की कहानी को बंया करती है  राजा सुहेल देव से पहले राजा कंस ने जो भयानक युद्ध किया था उससे उबरने में गाजी को सालो लग गए और अगली लड़ाई में गाजी बहराइच में मारा जाता है राजा सुहेल देव के द्वारा । आज के लिए बस इतना ही निष्कर्ष  राजपासी  राजा कंस  जैसे  बहुत  से ऐसे  योद्धा है जिन्होंने इस देश धर्म की रक्षा  के  खातिर  सबकुछ बलिदान  क्र दिया जिनका नाम आज भी इतिहास में गुमनाम है या  यूँ  कहे की  इतिहास  लिखने वालो ने जाति  देखकर  इतिहास  में वो जगह नहीं दी जो अन्य  राजाओ और  उनकी  जातियों को दी  गयी   वाह  रे  जातिवाद  लेकिन  जो  काम  लखनऊ के  राजपासियो ने  कर  के दिखा दिया वो  काबिलेतारीफ  है पासियो  ने  उस युद्ध में शुरु से लेकर अंत तक निर्णायक भूमिका निभाई और विजय प्राप्त की

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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

सरदार बसन्त पासी

अवध गजेटियर के अनुसार कहा जाता है कि उत्तर भारत में पासी समाज के छोटे बड़े कबीले हुआ करते थे और कबीलो का विस्तार करके पासी अपने आपको स्वतंत्र राजा घोसित कर देते थे ऐसे ही उन्नाव के औरास छेत्र में एक गाँव आता है गांगन बछौली बछौली में लगभग 15वि सदी में एक छोटा सा कबीेला था उस कबीले का सरदार गगन पासी था इस गगन पासी का एक लड़का था बसन्त पासी गगन के मौत के बाद सरदार बना बसन्त पासी बसन्त पासी ने आस पास के सभी गांव अपने साथ मिला लिए उन 22 गांव के लोगो ने बसन्त पासी को अपना स्वतंत्र राजा घोसित कर दिया बसन्त पासी राजा बनते ही अपने गांव का नाम अपने पिता के नाम से गगन रख दिया यही गगन आगे चलकर गांगन के नाम से विख्यात हुआ सरदार बसन्त पासी ने अपने क्षेत्र के रक्षा के लिए गांगन से लगभग एक किलो मीटर दूर मिटटी के दुर्ग का निर्माण किया यह दुर्ग लगभग 25 बीघे में बना हुआ है इस दुर्ग के चारो तरफ किसानों का कब्ज़ा हो गया है और इसी दुर्ग के पूर्व में एक सरकारी स्कूल का निर्माण किया गया उस दुर्ग के पूर्व और दक्षिण की तरफ कच्ची सड़क का निर्माण किया गया है इस दुर्ग पर प्राचीन ग्लजेवर के टुकड़े प्राप्त होते रहते है यह दुर्ग टिल्ले के रूप में मौजूद है इस दुर्ग के सरदार बसन्त पासी के नाम से इस क्षेत्र का नाम बसन्ता खेड़ा पड़ा कई वर्षों बाद गांगन दो भागों में विभाजन हो गया एक सड़क के दाहिनी ओर बछौली के नाम से प्रसिद्ध हुआ दूसरा अपने मूल नाम पर गांगन ही रहा याह क्षेत्र पासी बहुल क्षेत्र है पर यहाँ के पासी शिक्षित नही है इस क्षेत्र के पासी कच्ची शराब का सेवन करते है और इसी कारण कई लोगों की मौत हो गई आज राजाओ के वंसज पासी जुआ शराब के चुँगुल में फंसे हुए है

#वीरांगना_उदा_देवी_की_जयंती_और_उनका_इतिहास #वीरांगना_उदा_देवी_की_जयंती_कब_मनाई_जाती_है

वीरांगना ऊदा देवी की जयंती को लेकर सामाजिक संगठनों के बीच खींची तलवारे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  स...