शनिवार, 25 जुलाई 2020

महाबली सेनापति गोकरन पासी

1857 की क्रांति : महाबली सेनापति गोकरन पासी
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परिचय :
             गोकरन पासी
             राजा = राजा नरपति सिंह
             क्षेत्र =  रोईया गढ़ी (भड़ायल- हरदोई )
             सन् = 1857 ई की क्रांति

रोचक तथ्य  = अपने  40 किलो के फरसे से अंग्रेज घुड़सवार को  बीच से घोड़े सहित चीर डाला

इतिहास में अभी तक राणा प्रताप के लिए जाना जाता था कि अकबर के सेनापति को एक वार में बीच से चीर डाला था

दूसरा किस्सा अब महाबली गोकरन पासी का नाम जुड़ गया है जिसने अंग्रेज घुड़सवार को बीच से घोड़े सहित बीच से चीर डाला था  इसकी पुष्टि एक ठाकुर लेखक  धर्मेन्द्र सिंह सोमवंशी की पुस्तक "हरदोई  का स्वतंत्रा संग्राम और सेनानी " से होती है

महाबली गोकरन पासी का 40 किलो का फरसा धारी थे

         राजा नरपति सिंह हरदोई जिले में बिलग्राम से दस मील दूर सदामऊ ( रोइया ग्राम ) स्थित है । जहां के नरपति सिंह सत्तावनी क्रान्ति में अमर हो गए । राजा नरपति सिंह स्वयं वीर और वीरों के प्रशंसक एवं पोषक थे । उनकी सेना में वही भरती हो सकता था जो सेर भर या इससे अधिक भोजन सामग्री को पचा ले ।

महाबली गोकरन पासी

                      गोकरन पासी बेहद लंबा और बदन का गठीला  बलिष्ठ नौजवान था  वह लाठी भाजने में निपुण और बेहतर धनुषधारी था उसकी हिम्मत और दिलेरी पूरा गांव जानता है खेतों में ढीठ बैलो को काबू करना, बिगड़ैल बैलों के के गर्दनों में सरावन लगाना उसके दाएं हाथ का काम था , इलाके में गोकरन नाम गूंजता 6 फिट 2 इंच  से ज्यादा लंबा था ( क्यूंकि कहते है पहले घर के दरवाजे घर के लंबे सदस्य के बराबर नाप से बनाया जाता था ऊपरी सज्जे से एक- दो अंगुल छोड़कर ,दरवाजे कि नाप 7 फिट थी )  वो क्योंकि इलाके में कोई उसके जैसा लंबा नहीं था जितना उसका शरीर मानो उतना ही भोजन करता, कुश्ती लड़ना, पहलवानी करता,

( तभी तो 40 किलो का फरसा लेकर चलता था )

अभी वह जवानी में ही था इलाके में राजा की सेना भरती में डुग्गी बजी जो राजा की सेना में भर्ती होना चाहता है  वह स्वेच्छा से भर्ती हो सकता है उसे  ऐलान करने वाले  ने एक शर्त भी बताई भर्ती केवल वहीं हो सकता है  जो सेर भर से ज्यादा आटा फांक लें ।

अब बात खाने की हो ये सुनकर गोकरन से भला कैसे रहा जाता उसको भी अपनी ताकत और छमता दिखाने की धुन जो सवार रहती थी
     
                       वह भी भर्ती वाले दिन पहुंच गया लाइन में लगा , अधे से ज्यादा तो बाहर हो गए , क्योंकि राजा नरपति सिंह की एक अच्छी आदत थी कमजोर सिपाही नहीं भरती करते थे  गोकरन की बारी आ गई उसे 1 सेर आटा दिया गया , एक तो उसकी लम्बाई और गठीले बदन से प्रभावित थे ही , कई लोग धमाचौकड़ी से मजे ले रहे थे कि ये भी नहीं खा पाएगा

              लेकिन 1 सेर कब चट कर गया गोकरन पता नहीं चला और  यही नहीं 1 सेर और  मांगा  इससे सब आश्चर्य चकित होकर देखने लगे वही राजा साहब भी गौर से देखने लगे ,  और यह भी बहुत जल्द चट कर गया यह अचूक करतब देख सब हैरान थे ,आटा फांकने के  तुरंत बाद  लोग तालियां और शबाश गोकरन  शाबाश गोकरन की आवाजे आने लगी लोग देख के हैरान थे कि जहां 1 सेर खाना मुश्किल था वहीं 2 सेर अभी तक किसी ने नहीं खाया  इलाके में खबर आग के तरह फैली  , चारो तरफ एक खूब वह वाही लूटी गोकरन पासी ने , फिर गोकरन की शारीरिक दक्षता  देखी गई की वह पहले से ही  तीरंदाजी ,कुश्ती , पहलवानी में निपुण है   उसे सेना में भर्ती कर किया गया और वह बहुत जल्द राजा नरपति सिंह का अंगरक्षक बन गया वह सदा राजा के साथ रहता

               1857 की क्रांति का दौर
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1857 की क्रांति अचानक धधक उठी पूरा अवध आज़ादी की जलती चिता में कूद पड़े  थे अवध के पासी इस विद्रोह में कूद पड़े ।
शिवराजपुर के चंदेले ठाकुर सतीप्रसाद की प्रेरणा से नरपति सिंह भी अंग्रेजों के विरोधी संगठन में सम्मिलित हुए । और उनका सेनापति महाबली गोकरन पासी ल इस रणभेरी में साया बन के कूद पड़ा वह राजा नरपति सिंह के साथ सदा रहता है

चौथा मितौली युद्ध वर्णन ( 9 नवम्बर 1858 )
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राजा ने मितौली गढ़ी सुरक्षित समझकर उसमें अपनी सारी फोर्स लेकर पहुंच गये । रास्ते में दो तो राजा केदारनाथ थमरवा को सौंप गये थे कहा था पुनः जब लौटेंगे तब ले लेंगे जोकि बाद में पकड़ी गई थीं । रुझ्या दुर्ग से रात में राजा अपने रथ पर स्थी लाखन सिंह तथा बलशाली अंगरक्षक गोकरन पासी के साथ निकले थे परन्तु दो अंग्रेज घुड़सवार सैनिकों ने राजा को देख लिया था अतः वे दोनों राजा के रथ के पीछे राजा को मारने चल दिये । घोड़ों की टापे सुनकर राजा ने देखा कि दो घुड़सवार आ रहे हैं राजा ने गोकरन से  कहा देखो ये कौन है गोकरन ने बताया शत्रु हैं अतः गोकरन ने राजा को निश्चित रहने को कहकर अपना चालीस किलो का लम्बा फरसा निकालकर किनारे खड़ा हो गया , जैसे ही घुड़सवार पास आये वीर गोकरन ने अपने फरसा से एक अंग्रेज तथा घोड़े को आधा - आधा काट डाला , दूसरा अंग्रेज मूर्छित हो गिर गया उसे रथ के पीछे बांध कर मार डाला । आठ या नौ दिन ही मितौली में रह पाये थे कि अंग्रेजों को पता चल गया कि राजा तथा उनके साथी फीरोजशाह एवं लक्कड़शाह मितौली में हैं । अंग्रेजी फौज ने वहाँ भी 9 नवम्बर 1858 को चढाई कर दी । यहाँ पर बड़ा युद्ध हुआ । ब्रिटिश तोपखाना बहुत बड़ा था तथा आधुनिक हथियार थे अतः राजा को पीछे हटना पड़ा । तीनों वीर अपनी सेना लेकर जंगलों में चले गये ।

                     एक  विशेष घटना
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19 अप्रैल , 1858 समय प्रातः राजा अपने अंगरक्षक गोकरन पासी के साथ टहल रहे थे तभी अचानक एक सेनाधिकारी ने दो सैनिकों के साथ राजा को घेर लिया तथा सैनिकों से कहा पकड़ो इस नरपति को । तभी गोकरन गरजा ए बदतमीज , राजा हैं अदब से बात कर । तभी अधिकारी ने फिर कहा गिरफ्तार हो नहीं तो गोली मार दूंगा और रिवाल्वर निकालने लगा तथा सैनिक आगे पकड़ने हेतु बढ़े पलक झपकते गोकरन पासी  ने दोनों सैनिकों को अपनी दोनो बगलों में ऐसे दबा लिया जैसे भेड़िया बकरों को दबा लेता है । इसके बाद एक सैनिक को गेंद की भांति उक्त सेनाधिकारी " सोनप " पर फेंक दिया उसकी चोट से सोनप के हाथ से रिवाल्वर नीचे गिर गया तभी राजा ने जमीन से एक पड़े हुए लट्ठा को उठाकर सोनप पर दे मारा सोनप फड़फड़ाया और मर गया । सैनिकों को गोकरन ने दबाकर मार डाला । ऐसे बलिष्ट थे दोनों नरवीर ।

इतिहास में अभी तक राणा प्रताप के लिए जाना जाता था कि अकबर के सेनापति को एक वार में बीच से चीर डाला था

दूसरा किस्सा अब महाबली गोकरन पासी का नाम जुड़ गया है जिसने अंग्रेज घुड़सवार को बीच से घोड़े सहित बीच से चीर डाला था  इसकी पुष्टि एक ठाकुर लेखक  धर्मेन्द्र सिंह सोमवंशी की पुस्तक "हरदोई  का स्वतंत्रा संग्राम और सेनानी " से होती है

   अत :  ऐसे खोए हुए वीर को दुनिया जान सके इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे  यही ऐसे वीर को सच्ची शरद्धांजलि होगी ।

 ऐसे रोचक तथ्य आपके समाने लाता रहूंगा  पासी इतिहास जन जन तक पहुंचाने का काम करें ।
                   धन्यवाद

सलग्न कर्ता :
    (कुंवर प्रताप रावत)
The Pasi Landlords

रिफरेंस 1. गदर के फूल
            2. हरदोई का स्वतंत्रता संग्राम और सेनानी
            3.  रिजवी एण्ड भार्गव स्ट्रगल इन उ 0 प्र 0
            4.  और क्षेत्रीय की किदवंती भी जुड़ी है

( पासी इतिहासकार रामदयाल वर्मा जी का भी मार्गदर्शन रहा इस लेख में )



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