मंगलवार, 28 जुलाई 2020

महात्मा श्री गुरु चरण देव


परशुराम सातन की औलाद हो तुम,सुदेलदेव बिजली के खानदान हो तुम, निकलते थे रण मे लरजति जमी थी, नही आप मे वीरता की कमी थी, गये भूल क्या हो ओ बातें पुरानी, तुम्ही ने तो थी जंग गांजर की ठानी, उठो सोने वालो क्या सोते रहोगे, ओहो लाज अपनी क्या खोते रहोगे, गैरो ने आकर शसन जमाया, मिला कर के लोगो को तुमको मिटाया ||

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महात्मा श्री गुरुचरण देव जी महाराज (1913 -1983) ई.
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नाम - श्री गुरुचरण देव जी
जन्म - 1913 - 1983 ई.
पिता - डालचंद पासी
गुरु - गोविंद जी महराज

माता का बचपन में स्वर्गवास हो गया बालक अवस्था में गुरु चरण देव शुरुआती शिक्षा प्राप्त कर कक्षा 8 (उस समय मिडिल कहते थे , पास थे) । प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर श्री गुरु चरण देव बाल ब्रह्मचारी संत हो गया उन्होंने भारत देश का खूब भ्रमण किया ,पासी कुल सपूत शिरोमणि गुरु चरण देव जी के हृदय में पासी जाति के लिए प्रेम अंकुरित हुआ । वेद पुराण और ऐतिहासिक ग्रंथों का अध्ययन कर ज्ञान अर्जित किया साधुवेश धारी होकर पासी जाति की गिरी हुई अवस्था को देखा प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों को सूक्ष्मता से अध्ययन किया । उनके अथक परिश्रम से पासी जाति का इतिहास खोज निकाला एवं पासी इतिहास को सुदृढ़ किया एवं पासी इतिहास को प्रथम लिपिबद्ध किया जो अभी तक पासी इतिहास में कभी देखा नहीं गया था । जगह-जगह संगठन बनाकर पासी जाति की सभाएं आयोजित कराई । क्रमबद्ध तरीके से पासी इतिहास को दुनिया में पासी जन तक पहुंचाया और उस समय अपने अधिकारों के लिए लड़ना आवाज उठाना एवं नई चेतना पैदा किया जो 1920 - 21 में क्रांतिकारी मदारी पासी के बाद कुछ 10 सालों के लिए धीमा पड़ गया था वह एक बार फिर से तीव्र गति में आ चुका था । बस फर्क इतना था की जननायक मदारी पासी की क्रांति देशव्यापी था और श्री गुरु चरण देव जी की यह क्रांति पासी जाति सुधार एवं देश की सेवा था ।

✓अब आसान भाषा में समझते हैं !

• एक बात आप समझ लीजिए कि क्रांतिकारी मदारी पासी की जब भी बात आती है तो वह सर्व समाज यानी पूरे देश के लिए जाने गए और उनका एका आंदोलन /eka movement 1920-1921 AD गरीब किसानों मजदूरों के शोषण के खिलाफ था ।
• इसलिए पाठक गढ़ भ्रमित ना हो क्योंकि यह एक दूसरे के बिना भी अधूरे हैं और श्री गुरु चरण देव जी मुख्यतः पासी जाति के समाज सुधार के लिए जाने जाते हैं और श्री गुरु चरण देव मदारी पासी से खासा प्रभावित और प्रेरित थे इनका चाल ढाल बिल्कुल मदारी पासी जैसा ही था विद्रोही तेवर स्वतंत्र प्रवृत्ति और कुछ करने कि ललक थी ।

✓ श्री गुरु चरण देव जी का शुरुआती परिचय 1913-1983

 श्री गुरु चरण देव का आजीवन बाल ब्रह्मचारी थी इन्होंने विज्ञान वाद का सिद्धांत अपनाया यह क्रांतिकारी मदारी पासी से खासा प्रभावित थे और क्रांतिकारी मदारी पासी 1920 के दशक में गरीबों में किसानों में एक लहर पैदा कर दी थी, अत्याचार के खिलाफ लड़ने कि वह लड़ाई अधिकारो की थी बराबरी की थी, सालों साल चले आ रहे जमीदारी तालुकदारी प्रथा की आड़ में हो रहे गरीब किसानों के उत्पीड़न की ।
 
 श्री गुरु चरण देव जी का शुरुआती जीवन क्रांतिकारियों के बीच बीता था इसलिए वह गुरु चरण देव के अंदर क्रांतिकारी विचार थे वह अपने युग के समझ चुके थे अपने क्रांतिकारी विचार से पासी समाज में उस समय एक नई चेतना फूंक दी थी, जिससे पासी समाज 1930-1940 के दशक में अपने गौरवशाली अतीत को हासिल करने में लग गया ,लोग शिक्षित होने लगे अपने अधिकारों को जानने लगे , वह दौर विज्ञानवाद था ,लोग विज्ञान के जरिए पाखंड की पोल खोलने लगे पासी समाज में व्याप्त पाखंड को दूर करने के लिए गुरु चरण देव जी एड़ी चोटी जोर लगा दिया ,वह खुद स्वतंत्र विचार के थे लोगों को स्वतंत्र विचार रहने के उपदेश देते थे ।
" ताकि जो गुलामी मात्र एहसान तले दबकर जमीदारों से जुल्म सहते थे वह भावना भी इनमें दूर रहे "
श्री महात्मा गुरु चरण देव जी योगी से दूरदर्शी थे आधुनिक सोच वाले थे क्रांतिकारी विचार से ओतप्रोत थे ,उनका भेष महात्मा का था लेकिन पूर्णता विज्ञान वादी सिद्धांत के मानने वाले थे पाखंड उनको बिल्कुल भी पसंद नहीं था क्योंकि वह दौर आधुनिक विज्ञानवाद का था वह दौर भगत सिंह और मदारी पासी का था ।

✓ श्री गुरु चरण देव कि वेशभूषा एवं सोच

श्री गुरु चरण देव लंबे कद के 6 फुट से कुछ ज्यादा लंबे थे बाल ब्रह्मचारी एवं जनेऊधारी थे, गहरे सांवला रंग चेहरे पर तेज ,उनके पहनावे में खासतौर से अंतर दिखा वह सफेद कपड़ा पहनते थे ( जैसे मदारी पासी ) और वह अन्य साधुओं की तरह मात्र कपड़े का फेंटा नहीं लपेटते थे, वह दोहरे लॉन्ग की धोती पहनते थे , ताकि अचानक किसी भी आकस्मिक प्रतिक्रिया का जवाब देते उनका पहनावा बाधक ना आये । वह धनुष तीर और फरसा अपने साथ रखते थे उनका भेष बिल्कुल परशुराम जैसा था

श्री गुरु चरण देव शिव को मानने वाले शिव जैसा सादा जीवन व्यतीत करने वाले कल्याण का मार्ग अपनाने वाले , परोपकार के रास्ते पर चलने वाले क्रांतिकारी विचार के थे , वह पारंपरिक रूढ़िवादिता के भी खिलाफ थे वह आधुनिकता को अपनाने पर जोर देते , समय की मांग के हिसाब से खुद को ढालना ,देश प्रेम और समाज के हित में काम करने पर जोर देते हैं उनके कुश्ती के अखाड़े थे , पहलवानी करते करवाते थे ,क्योंकि वह समय ब्रिटिश शासन था और किसी को नहीं पता था कि देश कब आजाद होगा इसलिए

    " उन्होंने देश की और जाति की सेवा करने के लिए पासी वीर दल कायम किया "

वह अपने शिष्यों के नाम के आगे दास नहीं लगाने देते थे कहते थे कि दास गुलामी का प्रतीक होता है नाम के आगे देव लगाओ कहते थे- की हम राजपासी हैं हमने इस देश पर शासन किया है गुरुचरण देव क्रांतिकारी विचार के थे वह समाज के हित में कब ? कौन? सा फैसला ले लेते यह उन पर निर्भर करता था

✓ श्री गुरु चरण देव जी के कार्य एवं उपलब्धियां

श्री गुरु चरण देव वेद और पुराणों के अच्छे जानकार थे दूरदर्शी भी ,उन्होंने अपने ज्ञान से कई बड़े-बड़े ब्राह्मण महात्माओं को साक्षात्कार में परास्त किया जिससे कि उनके निकट के ब्राह्मण उनसे जलने लगे खासतौर से नैमिषारण्य और नैमिषारण्य के पांडव पुजारी से श्री गुरु चरण और उनके मंडली से झड़प भी हुई थी , क्योंकि यह पाखंड विरोधी थे तो समाज में एक नई विचारधारा पैदा कर दी और धीरे-धीरे श्री गुरु चरण देव की लोकप्रियता समाज में फैलती चली गई जैसे कि मदारी पासी की फैली थी ।
                             उन्होंने वेदों और पुराणों एवं अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों की सूक्ष्मता से अध्ययन कर उन्होंने पासी इतिहास को उजागर किया उन्होंने वर्षों वर्षों से चली आई पासी जाति में जो धारणा थी कि " परशुराम ने कुश घास से पांच तलवारे बनाई उसको संचालित करने के लिए पासी बनाया जो परशुराम के पसीने से अवतरित थे" उसका खंडन किया और बताया यहां मात्र ब्राह्मणों के वर्चस्व में बने रहने की कोरी कल्पित कहानी मात्र है जिसका उद्देश्य पासी जाति में हीन भावना पैदा करना मात्र था , उन्होंने इसका खंडन करते हुए कहा पसीने से अव्यवस्थित उत्पत्ति तो हो ही नहीं सकती हां उनके वंशज जरूर हो सकते है । उन्होंने 1930 के दशक में पासी जाति के ऊद्भ्व को सुदृढ़ किया ।

श्री गुरु चरण देव के मतानुसार - " कि परशुराम भृगु के वंश में आते हैं और भृगु धार्मिक ग्रंथो के अनुसार वरुण के लड़के कहे जाते हैं और वरुण को " पाशधर" बोला गया है "पाशी " बोला गया है और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वरुण को असुर बोला गया है , वही पासी नाग असुर की जाती कही जाती है और ऊपर से पासी लोग प्राचीन समय से भृगु और परशुराम को अपने कुल का मानते आए हैं "
                                     इसलिए गुरु चरण देव को समझने में देर नहीं लगी और भृगु को पासी माना और भृगु वंश समाज कि स्थापना की । क्योंकि वह पाखंडवाद और अंधविश्वास का मुकाबला उचित ज्ञान से करने वाले थे और पाखंड और अंधविश्वास में डूबे हुए पासी समाज को बाहर निकालने की कोशिश की और भृगु वंश की स्थापना मात्र पासी जाति में श्रेष्ठता , उच्चता , स्वछता ,की ओर अग्रसर करवाना था क्योंकि भृगु सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे । वह ऋषि भृगु से प्रेरणा लेते थे श्री गुरु चरण देव परशुराम को आदिवासी ही मानते थे ।
   
         " महत्वपूर्ण घटना जो 1935 में घटी "

नोट - 1951 प्रकाशित किताब "पासी छंद शरोदय " में उल्लेखित घटना
"5 ,जनवरी 1935 में दोनावा में सभा हुई उसमें बहुत से महात्मा शामिल हुए जैसे क्षेदम्भू दास साहब और श्याम दास जी साहब बहुत से महात्मा शामिल हुए थे उसमें पासी भाइयों को जनेऊ पहिरआया तो कई अज्ञानी ब्राह्मण जलने लगे उन्होंने कहा- कि जनेऊ ब्राह्मण का है ? पासी कैसे पहनेंगे ? भाइयों की जनेऊ तोड़े और दंगा किया इस पर बड़ा हाहाकार मचा हर तरफ अब सनसनी फैल गई सब कहने लगे कि यह पासी परशुराम के पुत्र भृगुवंशी बन गए हैं ? यह कैसे होगा ? इसलिए इस मामले का फैसला पंडित बंशीधर M.L.A ने किया जिसका कुल हाल खीरी जिले की रिपोर्ट में लिखा है "

क्योंकि उससमय सभी जातियों में समाज सुधार आंदोलन चलाया जा रहा था सभी सभी जातियां ऊपर उठने का प्रयास कर रही थी सभी जातियों में जनेऊ पहनाया जाने लगा जैसे चमार, भंगी ,कुर्मी ,अहिर ,पासी कुम्हार , मुराई, आदि और इन्हीं सभी जातियों का विरोध ब्राह्मण -ठाकुरों ने कड़ा विरोध किया ,क्योंकि उनको कहीं ना कहीं ऐसा लग रहा था कि यह सारी जातियां उनसे ऊपर उठ रही थी , जो उनको हज़म नहीं हो रही थी । अतः यह सारी जातियां समाज सुधार आंदोलन में जनेऊ पहना कर उच्च दर्जा प्राप्त कर रहे थे भला उच्च दर्जा कौन नहीं प्राप्त करना चाहता था !

तो उस समय समाज सुधार आंदोलन की प्रेरणा से भी श्री महात्मा गुरुचरण देव जी ने जनेऊ आंदोलन को अपनाया और पासी जन को जनेऊ पहनाने शुरू किया और उच्चता स्वच्छता और शिक्षा की ओर जोर दिया यहां तक कि शाकाहारी रहने पर बल दिया और मांसाहार को बहिष्कार किया यहां तक कि किसी भी पासी के मांस भक्षण करते हुए पाए जाने पर उस पर जुर्माना भी लगाते थे इतने क्रांतिकारी विचार और बागी तेवर से पासी समाज में जबरदस्त उछाल आया सीतापुर हरदोई लखीमपुर खेरी, रायबरेली, बाराबंकी ,लखनऊ ,बहराइच इलाहाबाद ,आदि में इस भृगु वंश मत का तेजी से फैलाव हुआ क्योंकि हरदोई इसका गढ़ था तो इसका प्रभाव हरदोई में खासा दिखाई पड़ा इसीलिए हरदोई क्षेत्र में शिक्षा का स्तर अन्य जिलों के मुकाबले ज्यादा है और 99% पासी हरदोई के शाकाहारी ही मिलेंगे इसके बाद इलाहाबाद का नंबर आता है

✓ पासी समाज सुधार एवं संघर्ष और 1930-1940-1950

हालांकि आगे चलकर जनेऊ आंदोलन पासी समाज के टूटने का कारण भी बना क्योंकि यह देखा गया कि पासी की उपजातियां आपस में ही भेदभाव करने लगी थी या यूं कहिए कि सत्ताधारीओ की बहुत बड़ी चाल भी थी गुरु चरण देव क्रांतिकारी विचार के थे ,वह समाज के हित में कब ? क्या ? फैसला ले उन्होंने जनेऊ आंदोलन का समर्थन किया , 1949 में में बहुत बड़ी सभा पासियों की कराई उसमें लखनऊ के आसपास के जिलों से भी पासी इकट्ठा हुए और उस सभा में बड़े उपदेश दिए गए और जनेऊ को उतार के फेंक दिया गया

पासियों के जनेऊ पहनने से ब्राह्मण ठाकुर में बड़ा रोष हो गया था कई जगहों पर पासी और ब्राह्मणों में वर्चस्व को लेकर झगड़ा शुरू हो गए थे दो ,तीन की मौत हो गई थी नैमिषारण्य में पांडा - पुजारियों से और पासी संतो के झगड़े हुए , सातन कोट के पास ठाकुर और पासीयों के झगड़े हो गए, फिर बाद में ब्रिटिश सरकार के दखल के बाद मामला शांत कराया गया

✓ जय भृगुवंश - पासी वीर दल 1940

फिर वजूद में आया " पासी वीर दल " श्री गुरु चरण देव ने एक अपना विंग की स्थापना की इन सभी चीजों में सबसे बड़ी चीज ध्यान देने योग्य है वह है श्री गुरु चरण देव जी के कार्य करने के तरीके जो काफी व्यवस्थित और सटीक रहते थे
" पासी वीर दल " की स्थापना पासी समाज सुधार और जाति एवं देश की सुरक्षा हेतु किया गया
     और इसका reclamation department द्वारा संपूर्ण भारत के चित्र सहित पीतल का तमगा पास कराया और गवर्नर से मान्यता प्राप्त की गई
आज भी इस पीतल के तमगे को देखने से पता चलता है भारत का नक्शा है जिसमें धनुष -तीर ,फरसा ,तलवार बना हुआ है

पासी वीर दल में शामिल होने वाले हर एक व्यक्ति के पास यह पीतल का तमगा एवं धनुष ,तीर ,फरसा तलवार रखने की इजाजत थी , इनकी वर्दी होती थी जो नीचे सफेद धोती और ऊपर खाकी रंग की खड़े कॉलर में कोट जैसा लिवास होता था , जो बटनदार ना होकर डोरी दार थे ।
                    ऐसे थे हमारे श्री गुरु चरण देव जी, जो महात्मा थे, अध्यात्म को समझा , जो क्रांतिकारी विचार वाले रहे , यहां तक कि उन्होंने अपने आप को नागवंश से माना और नाग सभ्यता से अपने आप को जोड़ा और सबसे बड़ी बात उस समय 1935 के करीब में उन्होंने अपना एक कमरा नीचे जमीन के नीचे बनवाया कहते थे कि हम नागवंश से हैं यह हमारी सभ्यता है और लखनऊ नागों का बसाया हुआ है जहां कि सुरंगे दूर दूर तक जाती हैं और कितनी तार्किक और ऐतिहासिक बात यह भी है लखनऊ में सुरंग भी पासी जाति ही खोद्दती थी और पासी सुरंग खोदने में बदनाम थे क्योंकि इनकी खोदी गई सुरंग में बिल्कुल सटीक जगहों पर खुलती थी , यह सारी चीजें परंपरागत थी और यही मजबूत विश्वास था श्री गुरु चरण देव जी का कि पासी वह नाग सभ्यता से जुड़े है
और लखनऊ महाराजा लाखन पासी के नाम से बसाया हुआ भी था उन्होंने इतिहास में शोध किया और आल्हा अंक लिखे

✓ Achievements/ उपलब्धियां

• श्री महात्मा गुरुचरण देव जी द्वारा 1940 के दशक में पासी समाज पर पहली बात प्रिंट हुआ यानी कि किताब छपाई और बटवाई
• पासी वीर दल की स्थापना
• भृगु वंश समाज कि स्थापना
• पासी जाति समाज सुधार आंदोलन
• क्रिमिनल ट्राइब से हटाने के लिए भारत सरकार से मांग
• पासी पंचायत प्रणाली को और सुदृढ़ किया आदि ।
• जय सत्य भृगु वंशी समाज पासी वीर महा सभा( किताब)

उस समय के किताबों में मिले श्री गुरु चरण देव के समय के साथी जो निम्न प्रकार से हैं
कालिका प्रसाद तपसी, श्री रग्बा, श्री बलदेव प्रसाद, श्री बहादुर जाजनई वाले , श्री दुनई प्रसाद, श्री मितान ,मा• लोचन लाल तपसी, महात्मा हनुमान लाल लखीमपुर वाले, श्री शिवनाथ ,श्री लखू भक्त, श्री राम भरोसे विकल, श्री मसूरियादीन इलाहाबाद वाले , और अयोध्या प्रसाद अभिलाषी आदि ।
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ऊपर दिए गए सारी जानकारी 1948 और 1951 में लिखी एक किताब श्री गुरु चरण देव जी के बारे में और उनके द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जो पासी वीर महासभा में दिया गया है उससे संदर्भित है उपयुक्त तो लेख में श्री गुरु चरण देव जी का सिद्धांत एवं उनके कार्य शैली को उजागर करना मात्र ,आज के पासी समाज के युवाओं को उनसे प्रेरणा लेना चाहिए ।

संग्रह करता एवं शोधकर्ता
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कुंवर प्रताप रावत
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