Eka movement और मदारी पासी : हरदोई का किसान विद्रोह
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परिचय :
नाम = क्रांतिकारी मदारी पासी
निवास = अहिरोरी क्षेत्र , हरदोई
आंदोलन = एका आंदोलन ( 1920-1921)
प्रांत = अवध (यूनाइटेड प्रोविंस ) , हरदोई , संडीला , बाराबंकी , सीतापुर, खीरी, रायबरेली, आदि।
संघर्ष :
ब्रिटिश साम्राज्यवाद एवं अत्याचारी जमींदार और तालुकेदारों के खिलाफ , मजदूरों -किसानों के अधिकारों की लड़ाई , लड़ाई बराबरी की, अपने हक़ कि
निष्कर्ष : मदारी पासी के नेतृत्व में एका आंदोलन अन्य आंदोलन के मुकाबले हवा की गति से फैला फलस्वरूप जालिम तालुकेदार और जमींदार अपने घुटने के बल आ गए, वहीं तालुकेदारों और जमींदार मदारी पासी के शर्तों को मानने पर विवश हुए, दूसरे आंदोलन कर रहे लोग आकर्षित होकर एका में कूद पड़े , इस कारण वश यह आंदोलन विकराल रूप धारण कर पूरे उत्तर प्रदेश (united province's) में फ़ैल गया , इस आंदोलन से तंग आकर तालुकेदारों के साथ मिल ब्रिटिश सरकार ने पूरी ताकत से यह आंदोलन 1922 के अंत तक दबा दिया गया ,मदारी पासी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका
उनकी मर्जी के बिना कोई उन तक पहुंच नहीं सकता था जबतक की वह खुद नहीं चाहते थे वह आजीवन स्वतंत्र रहे और भूमिगत हो गए ।
नोट 👉 - प्राप्त जानकारी 1922 के दौरान लिखे गए कुछ खास दस्तावेजों से ,1920 के दशक में छपे अखबारों के खबरों से उनके हरफनमौला गतिविधियों की जानकारी होती है
नोट 👉 - अभी तक प्राप्त जानकारी को और ज्ञानवर्धक बनाने एवं मदारी पासी जी को और भी ज्यादा जानने , समझने हेतु उनके पीछे के कड़ियों को जुटाने की कोशिश की गई है, कि कौन थे ? कहां के थे ? टूटी फूटी कड़ियों को जोड़ते हुए आज उनके बारे में रोचक तथ्यों से आप सभी को अवगत कराना है ।
।। अहिरोरी की घटना ।।
" Gazetteer of the Province of Oudh, Volume 2 , page ,244,245
1841 colonel low एक स्पेशल ऑडर पास करते है अहिरोरी के बागियों को गिरफ्तार करने के लिए यह इलाका पासियो से भरा हुआ है जिनको अंग्रेजो ने डकैत कहा ,....कैप्टन होलिंग 3 company infantry लेकर
विद्रोहियों का दमन करने आधी रात वहां पहुंच जाता है वहां संघर्ष शुरू होता है पर गोलियों के आवाज़ सुनकर , " गोहर " पाते ही पासी इक्कठा होकर बिखरे हुए अंग्रेज सिपाहियो को मार दिया........। "
ऊपर मैंने एक अहिरोरी की घटना 1841 का उदाहरण मात्र इसलिए दिया है ताकि आप समझ सके अहिरोरी अंग्रेजो के नज़र में विद्रोहियों का गढ़ था और वह इलाका पासियों से भरा हुआ था , और खास बात यह है कि मदारी पासी अहिरोरी क्षेत्र के ही थे यानी बागी पासियों के क्षेत्र से ..... बागीपना उनके खून में ही था ।
उन दिनों यह एक कारण मुख्य था किसी भी इंसान को बागी बनाना .......।
" मानो कि मदारी पासी का वायक्तिव कह रहा हो कि हमने हथियार छोड़े हैं चलाना नहीं भूले , और घड़ी आने पर हथियार उठा सकते हो "
मदारी पासी 1920 के समय लोगो के अनुभव अनुसार 70 साल हो चले थे यानी अपने वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे थे और उन बूढ़ी हड्डियों ने वह करके दिखा दिया जो कोई आम जन नहीं कर सका और साबित कर दिया कि " क्रांति की कोई उम्र नहीं होती " यह हिम्मत जरूर उनके पुरखों से उनको मिली थी ,जिनका दमन होते उन्होने बाल्यकाल में देखा होगा
एका आंदोलन /eka movement
एका आंदोलन मदारी पासी के नेतृव में शुरू किया गया। यह आंदोलन इतना मजबूत और संगठित था कि इसमें हर एक जाति एवं धर्म के लोग शामिल हुए थे तालुकेदारों और जमींदारो के अत्याचार के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया
अवध किसान आंदोलन के नायकों में मदारी पासी का नाम बड़ी जबर तरीके से लिया जाता और याद किया जाता है वह गरीबों के मसीहा कहे जाते थे और सभी समाज नायक हैं। गरीब किसानों की बेदखली, लगान और अनेक गैर कानूनी करों से मुक्ति के लिए उन्होंने संगठित और विद्रोही आंदोलन चलाया था। जब दक्षिणी अवध प्रांत का उग्र किसान आंदोलन सरकार और जमींदारों के क्रूर दमन के कारण 1921 के मध्य में दबा दिया गया था तथा असहयोग आंदोलनकारियों द्वारा निगल लिया गया था, ठीक उसी समय, मदारी पासी का ‘एका आंदोलन’ हरदोई जिले के उत्तरी और अवध के पश्चिमी जिलों में 1921 के अंत में और 1922 के प्रारम्भ में प्रकाश में आया।
मदारी पासी की कोई भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के मोहनखेड़ा में उनकी स्मृति में चबूतरा का निर्माण किया गया है और ये एक छोटी सी कोशिश स्थानीय लोगो के अनुसार बताए गए हुलिए के आधार पर एक चित्र से बनाया गया है ( नीचे देखें )
1922 के अखबारों के अनुसार जो बाते पता चलती है वह बेहद गदगद और जिज्ञासा पैदा करती है कि कितना आक्रामक रहा था एका आंदोलन और मदारी पासी का इतिहास
ब्रिटिश अखबार ‘द ग्लासगो हेराल्ड’, मार्च 10, 1922 और ‘द डेली मेल’, मार्च 10, 1922 ने यह समाचार छापा-
‘‘एका’’ का विकास हरदोई का एका आंदोलन निःसंदेह खतरनाक है लेकिन एक पल के लिए यह उतना चिंताजनक नहीं माना जा सकता । इसके अपील की नवीनता, अशिक्षित जनता की कल्पना है । मदारी पासी उसके नेताओं में से एक है जो चार आना प्रति की दर से टिकट बेच रहा है। माना यह जा रहा है कि यह धारक (टिकट धारक) को स्वराज मिलने पर भूमि का अधिकार प्रदान करेगा। इस आंदोलन को करने के लिए कुछ ब्राह्मणों द्वारा धार्मिक स्वरूप प्रदान किया गया है और व्यवहार में गंगा जल लेकर एकता कायम रखने का संकल्प लिया गया है। कई उदाहरण देखे गए हैं जब लोगों ने एका के शपथ को लेने से इन्कार किया लेकिन उन्हें शपथ लेने के लिए मजबूर किया गया । कुछ गांवों में एका वालों ने पंचायतों का गठन कर लिया है और एक गांव में, जहां राजनैतिक वातावरण एक हद तक उत्तेजित है, उन्होंने अपना कमिशनर, डिप्टी कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक और शहर कोतवाल का गठन कर लिया है। असहयोग आंदोलनकारियों के भी कुछ हद तक इस नये आंदोलन के विकास पर चिंतित होने की सूचना है जो उनके नियंत्रण से बाहर हो रहा है । जमींदार आशंकित हैं कि नये ‘एका वालो’ं का उद्देश्य उन्हें उनकी रियासत से बेदखल करना है। वे सोच रहे हैं कि यह आंदोलन निश्चय ही क्रांति और अराजकता की ओर बढ़ रहा है। विश्वास किया जा रहा है कि जिले में जो एक हजार से ज्यादा गैर लाइसेंसी हथियार हैं "
ANTI-LANDLORD MOVMENT IN INDIA
TIMES " TELIGRAM , PER THE PRESS ASSOCIATION
" Lucknow Thursday : , Aika या एका आंदोलन के रूप में जाने जाना वाला, एक अधिक चिंता का कारण एवं चिंताजनक विषय है, जो कि संयुक्त राज्य के कुछ हिस्सों में तेजी से फैलता जा रहा है, यह एक कृषि आंदोलन है। इनके द्वारा विरोध जमींदार की अचूकता के खिलाफ है ..............नए आंदोलन का प्रमुख नेता एक मदारी पासी हैं , जो छोटी जाति के व्यक्ति हैं , जो पहले गाँव का चौकीदार था , जो अब खुद को राजा कह रहा है , जो कि 2000 और उससे जायदा की भीड़ के नेता के रूप में जिनके पास लठियाँ भाले और तीर - कमान हैं , गांवों को आतंकित करने जा रहा है । वहाँ भीड़ ने सभी पुरुषों को निष्ठा की शपथ पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला है और अपनी फसलों और इमारतों को नष्ट कर आंदोलन में शामिल होने के लिए मजबूर किया । अभी तक किसी भी रक्तपात की सूचना नहीं है , लेकिन मदारी और उनके सहयोगियों निर्विवाद रूप से एक विस्तृत क्षेत्र के स्वामी प्रतीत हो रहे हैं , जिनमें से मुख्य केंद्र पूरे यूनाइटेड प्रोविन्स में हरदोई , संडीला और बाराबंकी है । वहाँ की स्थिति अब अराजक है । मदारी को गिरफ्तार करने का एक प्रयास विफल रहा है , यह स्पष्ट है कि अन्य नेताओं से निपटा आंदोलन को दबा दिया जाना चाहिए , क्योंकि पहले से ही पड़ोस के प्रांतों में इसी तरह के आंदोलन की अफवाहें हैं । "
ऊपर की ये लाइने जो ,ब्रिटिश अखबार ‘द ग्लासगो हेराल्ड’, मार्च 10, 1922 और ‘द डेली मेल’, मार्च 10, 1922 ने यह समाचार छापा था - उसके अनुवाद का छोटा सा अंश दिया है जिससे कि हमें मदारी पासी के कार्यशैली और कुशलता कि भांप सकते है
यह आंदोलन गरीब किसानों की बेदखली, लगान और अनेक गैर कानूनी करों से मुक्ति दिलाने के लिए,और जालिम तालुकेदारो, जमीदारो के खिलाफ उनके मनमाने बर्ताव और अत्याचारी कानून के खिलाफ था हालांकि यह आंदोलन जिस तीव्र गति से फैला था उसी तीव्र गति से अंग्रेजों ने इसका दमन किया , क्योंकि अगर अंग्रेज इसका दमन ना करते हैं तो अंग्रेजी सत्ता बहुत पहले ही उखड़ गई होती क्योंकि उस समय प्रथम विश्व युद्ध के चलते ब्रिटिश सरकार पर खासा दबाव था वह आंतरिक चल रहे किसी भी विद्रोह जोखिम नहीं मोड़ लेना लेना चाहते थे ,
इसलिए ब्रिटिश सरकार ने फौज लगाकर इस आंदोलन को बड़ी मजबूती से दबाया ,और ऊपर से उस समय चल रहा गांधी जी का असहयोग आंदोलन एका आंदोलन के आगे फीका पड़ रहा था , तीव्र गति से फैलने वाला " एका" आंदोलन असहयोग आंदोलन से कहीं आगे निकल गया था , तो ऐसा क्या हुआ एका आंदोलन कठोरता से दबाया गया, बल्कि असहयोग आंदोलन समानांतर मंद गति में चलता रहा । एक तरह से कह सकते हैं कि असहयोग आंदोलन " एका आंदोलन " को निकल गया ।
" मुझे तो साजिश की बू आ रही है "
मदारी पासी का यह क्रांतिकारी आंदोलन मुर्दों में भी जान फूंक देता है एका आंदोलन ना फिर कभी देखा गया और ना ही कभी हुआ ।
क्रांतिकारी मदारी पासी की को देखते हुए लगता है
क्रांति की कोई उम्र नहीं होती , और जहां अत्याचार है वहां दो चीजें होती हैं या डर मारे घुट-घुट के जीते रहो , या विद्रोह कर क्रांति पैदा कर दो , और क्रांति जब तक सफल नहीं हो सकती ,जब तक कि वह क्रांति जनता के बीच ना जाए और एका आंदोलन जानता कि क्रांति थी
- revolutionary -
मदारी पासी वास्तव में एक क्रांतिकारी थे और है और हमारे दिलो में रहेगें ।
( क्रांतिकारी मदारी पासी 1920-1921 )
जय क्रांतिकारी - जय मदारी
बड़ी मेहनत के साथ खोजबीन करके यह सारा इतिहास आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं कृपया ज्यादा से ज्यादा इसे शेयर करिए और अपने भाइयों तक ईसको पहुंचाए
( कुंवर प्रताप रावत )
The Pasi Landlords
प्राप्त जानकारी
1. 1922 की बेहद पुरानी किताब revolution or evolution
2. इंटरनेट पर उपलब्ध ब्रिटिश अखबार ‘द ग्लासगो हेराल्ड’, मार्च 10, 1922 और ‘द डेली मेल’, मार्च 10, 1922 , की कटिंग फोटो
3. स्थानीय किदवंती और कहानी में जीवित मदारी पासी का चित्रण ।
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परिचय :
नाम = क्रांतिकारी मदारी पासी
निवास = अहिरोरी क्षेत्र , हरदोई
आंदोलन = एका आंदोलन ( 1920-1921)
प्रांत = अवध (यूनाइटेड प्रोविंस ) , हरदोई , संडीला , बाराबंकी , सीतापुर, खीरी, रायबरेली, आदि।
संघर्ष :
ब्रिटिश साम्राज्यवाद एवं अत्याचारी जमींदार और तालुकेदारों के खिलाफ , मजदूरों -किसानों के अधिकारों की लड़ाई , लड़ाई बराबरी की, अपने हक़ कि
निष्कर्ष : मदारी पासी के नेतृत्व में एका आंदोलन अन्य आंदोलन के मुकाबले हवा की गति से फैला फलस्वरूप जालिम तालुकेदार और जमींदार अपने घुटने के बल आ गए, वहीं तालुकेदारों और जमींदार मदारी पासी के शर्तों को मानने पर विवश हुए, दूसरे आंदोलन कर रहे लोग आकर्षित होकर एका में कूद पड़े , इस कारण वश यह आंदोलन विकराल रूप धारण कर पूरे उत्तर प्रदेश (united province's) में फ़ैल गया , इस आंदोलन से तंग आकर तालुकेदारों के साथ मिल ब्रिटिश सरकार ने पूरी ताकत से यह आंदोलन 1922 के अंत तक दबा दिया गया ,मदारी पासी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका
उनकी मर्जी के बिना कोई उन तक पहुंच नहीं सकता था जबतक की वह खुद नहीं चाहते थे वह आजीवन स्वतंत्र रहे और भूमिगत हो गए ।
नोट 👉 - प्राप्त जानकारी 1922 के दौरान लिखे गए कुछ खास दस्तावेजों से ,1920 के दशक में छपे अखबारों के खबरों से उनके हरफनमौला गतिविधियों की जानकारी होती है
नोट 👉 - अभी तक प्राप्त जानकारी को और ज्ञानवर्धक बनाने एवं मदारी पासी जी को और भी ज्यादा जानने , समझने हेतु उनके पीछे के कड़ियों को जुटाने की कोशिश की गई है, कि कौन थे ? कहां के थे ? टूटी फूटी कड़ियों को जोड़ते हुए आज उनके बारे में रोचक तथ्यों से आप सभी को अवगत कराना है ।
।। अहिरोरी की घटना ।।
" Gazetteer of the Province of Oudh, Volume 2 , page ,244,245
1841 colonel low एक स्पेशल ऑडर पास करते है अहिरोरी के बागियों को गिरफ्तार करने के लिए यह इलाका पासियो से भरा हुआ है जिनको अंग्रेजो ने डकैत कहा ,....कैप्टन होलिंग 3 company infantry लेकर
विद्रोहियों का दमन करने आधी रात वहां पहुंच जाता है वहां संघर्ष शुरू होता है पर गोलियों के आवाज़ सुनकर , " गोहर " पाते ही पासी इक्कठा होकर बिखरे हुए अंग्रेज सिपाहियो को मार दिया........। "
ऊपर मैंने एक अहिरोरी की घटना 1841 का उदाहरण मात्र इसलिए दिया है ताकि आप समझ सके अहिरोरी अंग्रेजो के नज़र में विद्रोहियों का गढ़ था और वह इलाका पासियों से भरा हुआ था , और खास बात यह है कि मदारी पासी अहिरोरी क्षेत्र के ही थे यानी बागी पासियों के क्षेत्र से ..... बागीपना उनके खून में ही था ।
उन दिनों यह एक कारण मुख्य था किसी भी इंसान को बागी बनाना .......।
" मानो कि मदारी पासी का वायक्तिव कह रहा हो कि हमने हथियार छोड़े हैं चलाना नहीं भूले , और घड़ी आने पर हथियार उठा सकते हो "
मदारी पासी 1920 के समय लोगो के अनुभव अनुसार 70 साल हो चले थे यानी अपने वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे थे और उन बूढ़ी हड्डियों ने वह करके दिखा दिया जो कोई आम जन नहीं कर सका और साबित कर दिया कि " क्रांति की कोई उम्र नहीं होती " यह हिम्मत जरूर उनके पुरखों से उनको मिली थी ,जिनका दमन होते उन्होने बाल्यकाल में देखा होगा
एका आंदोलन /eka movement
एका आंदोलन मदारी पासी के नेतृव में शुरू किया गया। यह आंदोलन इतना मजबूत और संगठित था कि इसमें हर एक जाति एवं धर्म के लोग शामिल हुए थे तालुकेदारों और जमींदारो के अत्याचार के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया
अवध किसान आंदोलन के नायकों में मदारी पासी का नाम बड़ी जबर तरीके से लिया जाता और याद किया जाता है वह गरीबों के मसीहा कहे जाते थे और सभी समाज नायक हैं। गरीब किसानों की बेदखली, लगान और अनेक गैर कानूनी करों से मुक्ति के लिए उन्होंने संगठित और विद्रोही आंदोलन चलाया था। जब दक्षिणी अवध प्रांत का उग्र किसान आंदोलन सरकार और जमींदारों के क्रूर दमन के कारण 1921 के मध्य में दबा दिया गया था तथा असहयोग आंदोलनकारियों द्वारा निगल लिया गया था, ठीक उसी समय, मदारी पासी का ‘एका आंदोलन’ हरदोई जिले के उत्तरी और अवध के पश्चिमी जिलों में 1921 के अंत में और 1922 के प्रारम्भ में प्रकाश में आया।
मदारी पासी की कोई भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के मोहनखेड़ा में उनकी स्मृति में चबूतरा का निर्माण किया गया है और ये एक छोटी सी कोशिश स्थानीय लोगो के अनुसार बताए गए हुलिए के आधार पर एक चित्र से बनाया गया है ( नीचे देखें )
1922 के अखबारों के अनुसार जो बाते पता चलती है वह बेहद गदगद और जिज्ञासा पैदा करती है कि कितना आक्रामक रहा था एका आंदोलन और मदारी पासी का इतिहास
ब्रिटिश अखबार ‘द ग्लासगो हेराल्ड’, मार्च 10, 1922 और ‘द डेली मेल’, मार्च 10, 1922 ने यह समाचार छापा-
‘‘एका’’ का विकास हरदोई का एका आंदोलन निःसंदेह खतरनाक है लेकिन एक पल के लिए यह उतना चिंताजनक नहीं माना जा सकता । इसके अपील की नवीनता, अशिक्षित जनता की कल्पना है । मदारी पासी उसके नेताओं में से एक है जो चार आना प्रति की दर से टिकट बेच रहा है। माना यह जा रहा है कि यह धारक (टिकट धारक) को स्वराज मिलने पर भूमि का अधिकार प्रदान करेगा। इस आंदोलन को करने के लिए कुछ ब्राह्मणों द्वारा धार्मिक स्वरूप प्रदान किया गया है और व्यवहार में गंगा जल लेकर एकता कायम रखने का संकल्प लिया गया है। कई उदाहरण देखे गए हैं जब लोगों ने एका के शपथ को लेने से इन्कार किया लेकिन उन्हें शपथ लेने के लिए मजबूर किया गया । कुछ गांवों में एका वालों ने पंचायतों का गठन कर लिया है और एक गांव में, जहां राजनैतिक वातावरण एक हद तक उत्तेजित है, उन्होंने अपना कमिशनर, डिप्टी कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक और शहर कोतवाल का गठन कर लिया है। असहयोग आंदोलनकारियों के भी कुछ हद तक इस नये आंदोलन के विकास पर चिंतित होने की सूचना है जो उनके नियंत्रण से बाहर हो रहा है । जमींदार आशंकित हैं कि नये ‘एका वालो’ं का उद्देश्य उन्हें उनकी रियासत से बेदखल करना है। वे सोच रहे हैं कि यह आंदोलन निश्चय ही क्रांति और अराजकता की ओर बढ़ रहा है। विश्वास किया जा रहा है कि जिले में जो एक हजार से ज्यादा गैर लाइसेंसी हथियार हैं "
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TIMES " TELIGRAM , PER THE PRESS ASSOCIATION
" Lucknow Thursday : , Aika या एका आंदोलन के रूप में जाने जाना वाला, एक अधिक चिंता का कारण एवं चिंताजनक विषय है, जो कि संयुक्त राज्य के कुछ हिस्सों में तेजी से फैलता जा रहा है, यह एक कृषि आंदोलन है। इनके द्वारा विरोध जमींदार की अचूकता के खिलाफ है ..............नए आंदोलन का प्रमुख नेता एक मदारी पासी हैं , जो छोटी जाति के व्यक्ति हैं , जो पहले गाँव का चौकीदार था , जो अब खुद को राजा कह रहा है , जो कि 2000 और उससे जायदा की भीड़ के नेता के रूप में जिनके पास लठियाँ भाले और तीर - कमान हैं , गांवों को आतंकित करने जा रहा है । वहाँ भीड़ ने सभी पुरुषों को निष्ठा की शपथ पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला है और अपनी फसलों और इमारतों को नष्ट कर आंदोलन में शामिल होने के लिए मजबूर किया । अभी तक किसी भी रक्तपात की सूचना नहीं है , लेकिन मदारी और उनके सहयोगियों निर्विवाद रूप से एक विस्तृत क्षेत्र के स्वामी प्रतीत हो रहे हैं , जिनमें से मुख्य केंद्र पूरे यूनाइटेड प्रोविन्स में हरदोई , संडीला और बाराबंकी है । वहाँ की स्थिति अब अराजक है । मदारी को गिरफ्तार करने का एक प्रयास विफल रहा है , यह स्पष्ट है कि अन्य नेताओं से निपटा आंदोलन को दबा दिया जाना चाहिए , क्योंकि पहले से ही पड़ोस के प्रांतों में इसी तरह के आंदोलन की अफवाहें हैं । "
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यह आंदोलन गरीब किसानों की बेदखली, लगान और अनेक गैर कानूनी करों से मुक्ति दिलाने के लिए,और जालिम तालुकेदारो, जमीदारो के खिलाफ उनके मनमाने बर्ताव और अत्याचारी कानून के खिलाफ था हालांकि यह आंदोलन जिस तीव्र गति से फैला था उसी तीव्र गति से अंग्रेजों ने इसका दमन किया , क्योंकि अगर अंग्रेज इसका दमन ना करते हैं तो अंग्रेजी सत्ता बहुत पहले ही उखड़ गई होती क्योंकि उस समय प्रथम विश्व युद्ध के चलते ब्रिटिश सरकार पर खासा दबाव था वह आंतरिक चल रहे किसी भी विद्रोह जोखिम नहीं मोड़ लेना लेना चाहते थे ,
इसलिए ब्रिटिश सरकार ने फौज लगाकर इस आंदोलन को बड़ी मजबूती से दबाया ,और ऊपर से उस समय चल रहा गांधी जी का असहयोग आंदोलन एका आंदोलन के आगे फीका पड़ रहा था , तीव्र गति से फैलने वाला " एका" आंदोलन असहयोग आंदोलन से कहीं आगे निकल गया था , तो ऐसा क्या हुआ एका आंदोलन कठोरता से दबाया गया, बल्कि असहयोग आंदोलन समानांतर मंद गति में चलता रहा । एक तरह से कह सकते हैं कि असहयोग आंदोलन " एका आंदोलन " को निकल गया ।
" मुझे तो साजिश की बू आ रही है "
मदारी पासी का यह क्रांतिकारी आंदोलन मुर्दों में भी जान फूंक देता है एका आंदोलन ना फिर कभी देखा गया और ना ही कभी हुआ ।
क्रांतिकारी मदारी पासी की को देखते हुए लगता है
क्रांति की कोई उम्र नहीं होती , और जहां अत्याचार है वहां दो चीजें होती हैं या डर मारे घुट-घुट के जीते रहो , या विद्रोह कर क्रांति पैदा कर दो , और क्रांति जब तक सफल नहीं हो सकती ,जब तक कि वह क्रांति जनता के बीच ना जाए और एका आंदोलन जानता कि क्रांति थी
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मदारी पासी वास्तव में एक क्रांतिकारी थे और है और हमारे दिलो में रहेगें ।
( क्रांतिकारी मदारी पासी 1920-1921 )
जय क्रांतिकारी - जय मदारी
बड़ी मेहनत के साथ खोजबीन करके यह सारा इतिहास आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं कृपया ज्यादा से ज्यादा इसे शेयर करिए और अपने भाइयों तक ईसको पहुंचाए
( कुंवर प्रताप रावत )
The Pasi Landlords
प्राप्त जानकारी
1. 1922 की बेहद पुरानी किताब revolution or evolution
2. इंटरनेट पर उपलब्ध ब्रिटिश अखबार ‘द ग्लासगो हेराल्ड’, मार्च 10, 1922 और ‘द डेली मेल’, मार्च 10, 1922 , की कटिंग फोटो
3. स्थानीय किदवंती और कहानी में जीवित मदारी पासी का चित्रण ।
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